पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/४७२

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योगवाशिष्ठ।

है उसके शिखर पर एक नगर बसेगा तिसका नाम प्रद्युम्न और उस शिखर पर कमलों से पूर्ण एक ताल होगा जहाँ राजा का एक स्थान होगा और ईशान कोण की मारे उसका मन्दिर होगा। उस मन्दिर के छिद्र में व्याल नामक दैत्य आलय बना चिड़िया होकर रहेगा और निरर्थक शब्द करेगा। उस काल में श्रीशंकर नाम राजा गुण और भूति से सम्पन्न मानो दूसरा इन्द्र होगा और उसके मन्दिर के छत की कड़ी के विद्र में दाम नाम दैत्य मच्चर होकर शब्द करता विचरेगा। कट नाम देत्य वहाँ क्रीड़ा का पक्षी होगा और रत्नों से जड़े हुए पिंजड़े में रहेगा। उस राजा का नरसिंह नाम मन्त्री बड़ा बुद्धिमान होगा। जैसे हाथ में आँवला होता है तैसे ही उस मन्त्री को बन्ध भौर मुक्ति का ज्ञान प्रसिद्ध होगा। वह मन्त्री राजा के आगे दाम, व्याल, कट की कथा श्लोक चाँधकर कहेगा। तब वह करकर नाम पक्षी अर्थात् कट दैत्य को पिंजड़े में सुनने से अपना वृत्तान्त सब स्मरण होगा और उसको विचारेगा। तब उसका मिथ्या अहंकार शान्त होगा और वह परम निर्वाण सत्ता को प्राप्त होगा। इसी प्रकार राजा के मन्दिर में चिड़िया हुमा ब्याल नाम देत्य भी सुनकर परम निर्वाण सत्ता को प्राप्त होगा और लकड़ी के छिद्र में मच्छर हुआ दाम नाम दैत्य भी मुक्त होगा। हे रामजी! यह सम्पूर्ण क्रम मैंने तुमसे कहा है। यह संसार भ्रम मायामय है और अत्यन्त भास्वर (प्रकाशरूप) भासता है, पर महाशून्य और अविचारसिद्ध है। विचार करके वान हुए से शान्त हो जाता है—जैसे मृगतृष्णा का जल भली प्रकार देखे से शान्त हो जाता है। यद्यपि अज्ञानी बड़े पद को प्राप्त होता है तो भी मोह से अधो से अधो चला जाता है—जैसे दाम, व्याल, कट महाजाल में पड़े थे। कहाँ तो वह बल की भौंह टेदी करने से सुमेरु ओर मन्दराचल से पर्वत गिर जावें और कहाँ राजा के गृह में काष्ठ के छिद्र में मच्छर हुए, कहाँ वह बल जिसके हाथ की चपेट से सूर्य और चन्द्रमा गिर पड़ें और कहाँ प्रद्युम्न पहाड़ के गृहछिद्र में चिड़िया होना, कहाँ वह बल जो सुमेरु पर्वत को पीले फूल की नाई बीला करके उठा लेना और कहाँ पहाड़ के शिखर पर गृह में पक्षी होना।