और यह बड़े बली भी बिजलीवत् चमत्कार करने लगे। दोनों ओर से युद्ध होने लगे और शस्त्रों की नदियों का प्रवाह चला, पर भीम, भास, दट धैर्य से खड़े रहे। कभी कोई शस्त्र का प्रहार लगे तब युद्ध के अभ्यास से देह का मोह भान फुरे पर फिर विचार में सावधान हो कि हम तो अशरीर हैं और चैतन्यमय, निराकार, निर्विकार, अद्वैत, अच्युतरूप हैं, हमारे सङ्ग शरीर कहाँ है। जब जब मोह आवे तब तब ऐसे विचार करें और जरा मरण उनको कुछ न भासे। वे निर्भय होकर वासना जाल से मुक्त हुए शत्रु को मारते और युद्ध करते थे और हेयोपादेय से रहित समदृष्टि हो युद्ध कार्य को करते रहे। निदान दृढ़ युद्ध हुआ तब देवताओं की सेना मारी गई और जो कुछ शेष रहे सो भीम, भास, दट के भय से भागे। जैसे जल पर्वत से उतरता है और तीक्ष्ण वेग से चलता है तैसे ही देवता तीक्ष्ण वेग से भागे और क्षीरसमुद्र में भगवान विष्णु की शरण में गये। उनको देखके विष्णुभगवान् ने कहा कि तुम यहाँ ठहरो मैं उनको युद्ध करके मार आता हूँ। ऐसे कहकर विष्णु भगवान सुदर्शनचक्र लेकर सम्बर की ओर आये उनका ओर सम्बर का बड़ा युद्ध हुआ मानो अकाल प्रलय आया है। बड़े बड़े पर्वत उबलने लगे और युद्ध होने लगा तव सम्बर भागा और महाप्रकाशरूप सुदर्शनचक्र से विष्णुजी ने उनको मार लिया। सम्बर शरीर को त्याग के विष्णुपुरी को प्राप्त हुआ और विष्णु भगवान ने भीम, भास, दट के अन्तःपुर्यष्टक में प्रवेश किया और उनकी चित्तकला जो प्राण से मिश्रित थी उसको अस्त किया। जैसे पवन दीपक को निर्वाण करता है तैसे ही उनकी पुर्यष्टक फुरने से निर्वाण हुई। आगे वे जीवन्मुक्त थे सो अब विदेहमुक्त हुए। हे रामजी। वे भीम, भास, दट निर्वासनिक थे इस कारण बुझे दीपकवत् निर्वाण हो गये। जो वासना संयुक्त है वह बन्धवान जो निर्वासनिक है वह मुक्तरूप है। तुम भी विवेक से निर्वासनिक हो। जब यह निश्चय होता है कि सब जगत् असवरूप है तब वासना नहीं फुरती, इससे यथार्थ देखना कि किसी जगत् के पदार्थ में आसक्त बुद्धि न हो। वासना और चित्त एक ही वस्तु के नाम हैं, सर्व पदार्थों के शब्द और