पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/५०६

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योगवाशिष्ठ।

और वैराग्य के बल से इसको निकाल के अपना उद्धार करो। जिस पुरुष को अपने मन पर भी दया नहीं उपजती कि संसार दुःख से निकले वह मनुष्य का आकार है परन्तु राक्षस है।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे स्थितिप्रकरणे जीवतत्त्ववर्णनन्नाम द्विचत्वारिंशत्तमस्सर्गः॥४२॥

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी। इस प्रकार जो जीव परमात्मा से फुरकर संसारभावना करते हैं उनकी संख्या कुछ नहीं कही जाती, कोई पूर्व उपजे हैं, कोई अपूर्व उपजे हैं और कोई अब तक उपजते हैं। जैसे फुरने से जल के कणके प्रकट होते है तेसे ही ब्रह्मसत्ता से जीव फुरते हैं पर अपनी वासना से बाँधे हुए भटकते हैं और विवश होकर नाना प्रकार की दशा को प्राप्त होते हैं, चिन्ता से दीन हो जाते हैं ओर दशों दिशा जल थल में भ्रमते हैं। जैसे समुद्र में तरङ्ग उपजते हैं और नष्ट होते हैं तैसे ही जीव जन्म और मरण पाते हैं। किसी का प्रथम जन्म हुआ है, किसी के सौ जन्म हो चुके हैं, कोई असंख्य जन्म पा चुके हैं, कोई भागे होंगे, कोई होकर मिट गये हैं और कोई अनेक कल्पपर्यन्त अज्ञान से भटकेंगे। कोई भब जरा में स्थित है, कोई यौवन में स्थित हैं, कोई मोह से नष्ट हुए हैं, कोई अल्पवय होकर स्थित हैं, कोई अनन्त आनन्दी हुए हैं, कोई सूर्यवत् उदितरूप हैं, कोई किन्नर हैं, कोई विद्याधर हैं, और कोई सूर्य, चन्द्रमा, इन्द्र, वरुण, कुचेर, रुद्र, ब्रह्मा, विष्णु, यक्ष, वैताल और सर्प हैं। कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कहाते हैं और कोई क्रान्त, चाण्डाल आदिक हैं। कोई तृण, औषध, पत्र, फल, मूल को प्राप्त हुए हैं और कोई लता, गुच्छे, पाषाण, शिखर हुए हैं। कोई कदमवृष, ताल और तमाल है और कोई मण्डलेश्वर चक्रवर्ती हुए भ्रमते हैं। कोई मुनीश्वर मौनपद में स्थित हैं, कोई कृमि, कीट, पिपीलिका आदिक रूप हैं। कोई सिंह, मृग, घोड़े, खच्चर, गर्दभ, चेत आदिक पशुयोनि में हैं और कोई सारस, चक्रवाक, कोकिला, बगुलादिक पक्षी हैं। कोई कमल कली, कुमुद, सुगन्धादिक हैं और कोई आपदा से दुःखी हैं। कोई सम्पदावान हैं, कोई स्वर्ग और कोई नरक में स्थित हैं। कोई