पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/५५०

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योगवाशिष्ठ।

सघनरूप जगत् कैसे रचते हैं वह कम से कहिए? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जब प्रथम ब्रह्मा उत्पन्न हुए तब जैसे गर्भ से बालक उपजता है तैसे ही उपजकर बारम्बार इस शब्द का उच्चार किया कि 'ब्रह्म'! 'ब्रह्म! इस कारण उसको ब्रह्मा कहते हैं। फिर संकल्प जालरूप और कल्पित आकार मन हो पाया, उस मन ने संकल्पलक्ष्मी फैलाई। प्रथम संकल्प से माया उपजती है, फिर तेज अग्नि के चक्रवत् फुरने लगा और उससे बड़ााकार होगया। फिर वह ज्वाला की नाई, सुवर्ण लतारूप, बड़ी जटा संयुक्त, प्रकाश को धारे और शरीर मनसंयुक्त सूर्यरूप होकर स्थित हुआ और अपने समान आकार बड़े प्रकाशसंयुक्त कल्पा और ज्वाला का मण्डल आकाश के मध्य स्थित हुआ-अग्निरूप और जिसके अग्नि ही अङ्ग हैं। हे महाबुद्धिमन्, रामजी! इस प्रकार तो ब्रह्मा से सूर्य हुए है और दूसरी जो तेज किरणे फुरती हैं वे आकाश में तारागण विम्ब पर आरूद फिरते हैं। फिर ज्योज्यों वह संकल्प करता गया त्यों त्यों तत्काल ही सिद्ध होकर भासने लगा। इसी प्रकार आगे जगत् रचा। जिस प्रकार इस सृष्टि में ब्रह्मा रचता है उसी प्रकार और सृष्टि में रचते हैं। प्रथम प्रजापति, फिर कालकलना-नक्षत्र और तारागण, फिर देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, गन्धर्व, यक्ष, नदियाँ, समुद्र, पर्वत सब इसी प्रकार कल्पे और जैसे समुद्र में तरङ्ग कल्पित होते हैं तैसे ही सिद्ध रचके उनके कर्म रचे। वे भी शुभ संकल्परूप हैं जैसा संकल्प करें वही सिद्ध होकर भासने लगे। इसी प्रकार फिर भूत और तारागण उत्पन्न किये और उन्होंने और उत्पन्न किये। तब ब्रह्माजी ने वेद उत्पन्न किया और जीवों के नाम, आचार, कर्मवृत्ति बनाये और जगत्मर्यादा के लिये नीतिरूप स्त्री को रचा। इसी प्रकार ब्रह्म की माया ब्रह्मारूप से बड़े शरीर धर रही है। आगे सृष्टि का विस्तार है, लोक और लोकपालों के क्रम किये हैं और सुमेरु और पृथ्वी के मध्य दशों दिशा रचकर सुख, मृत्यु, राग, द्वेष प्रकट किये। इस प्रकार सम्पूर्ण जगत् त्रिगुणरूप ब्रह्माजी ने रचा और जैसे उसने रचा है तैसे ही स्थित है यह जो कुछ सम्पूर्ण दृश्य भासता है वह सब मायामात्र है। हे रामजी! इस प्रकार जगत् का क्रम हुआ है। संकल्परूप