पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/५५८

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योगवाशिष्ठ।

हुआ पशु गढ़े में फँस जावे और उसको काढ़ लेवे तैसे ही बुद्धि को मलीन संस्कार से काढ़ि ले। हे रामजी जो तमास-राजसी जाति है उसको भी जन्म और कर्म के संस्काखश से सात्त्विक प्राप्त होता है और वह भी अपने विचार द्वारा सात्त्विक जाति को प्राप्त होता है। पुरुष के भीतर अनुभवरूपी चिन्तामणि है उसमें जो कुछ निवेदन करता है वही रूप हो जाता है। इससे पुरुषार्थ करके अपना उद्धार करो पुरुषप्रयत्न से पुरुष बड़े गुणों से संपन्न हो मोक्ष पाता है और उसका अन्त का जन्म होता है, फिर जन्म नहीं पाता और अशुभ जाति के कर्म निवृत्त हो जाते हैं। ऐसा पदार्थ पृथ्वी, आकाश और देवलोक में कोई नहीं जो यथाशास्त्र प्रयत्न करके न पाइये। हे रामजी! तुम तो बड़े गुणों से संपन्न हो और धैर्य उत्तम वैराग्य और दृढ़ बुद्धि से संयुक्त हो और उसके पाने को धर्मबुद्धि से वीतशोक हो। तुम्हारे क्रम को जो कोई जीव ग्रहण करेगा वह मूढ़ता से रहित होकर अशोक पद को प्राप्त होगा। अब तुम्हारा अन्त का जन्म है और बड़े विवेक से संयुक्त हो तुम्हारी बुद्धि में शान्ति आदि गुण फैल गये हैं और उनसे तुम शोभते हो। सात्त्विक गुण से सबमें रम रहे हो और संसार की बुद्धि, मोह और चिन्ता तुमको मिथ्या है—तुम अपने स्वस्थस्वरूप में स्थित हो।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे महारामायणे स्थितिप्रकरणे मोक्षोपायवर्णन न्नामैकषष्टितमस्सर्ग॥६१॥

 

समाप्तमिदम् स्थिति प्रकरणं चतुर्थम्।