ईश्वरों का भी ईश्वर है प्रसन्न होगा तो आपही स्वयंप्रकाश देखेगा और सब दोष दृष्टि क्षीण हो जायगी। मोहरूपी बीज को जो मुट्ठी भर बोता था और नाना प्रकार की आपदारूपी वर्षा से महामोह की बेलि जो होती दृष्टि आती थी वह सब नष्ट हो जाती है। जब परमात्मा का साक्षात्कार होता तब भ्रान्तिदृष्टि नहीं आती। हे रामजी! तुम सदा बोध से आत्मपद में स्थित हो, जनकवत् कर्मों का प्रारम्भ करो और ब्रह्म लक्षवान होकर जगत् में विचरो तब तुमको खेद कुछ न होगा। जब नित्य आत्मविचार होता है तब परमदेव बापही प्रसन्न होता है और उसके साक्षात्कार हुए से तुम चञ्चलरूपी संसारीजनों को देखकर जनक की नाई हँसोगे। हे रामजी! संसार के भय से जो जीव भयभीत हुए हैं उनको अपनी रक्षा करने को अपना ही प्रयत्न चाहिये और दैव अथवा कर्म वा धन, वान्धवों से रक्षा नहीं होती। जो पुरुष दैव को ही निश्चय कर रहे हैं पर शास्त्रविरुद्ध कर्म करते हैं और संकल्प विकल्प में तत्पर होते हैं वे मन्दबुद्धि हैं उनके मार्ग की ओर तुम न जाना उनकी बुद्धि नाश करती है, तुम परम विवेक का आश्रय करो और अपने भापको प्रापसे देखो। वैराग्यवान् शद्ध बुद्धि से संसार समुद्र को तर जाता है। यह मैंने तुमसे जनक का वृत्तांत कहा है—जैसे आकाश से फल गिर पड़े तैसे ही उसको सिद्धों के विचार में ज्ञान की प्राप्ति हुई। यह विचार ज्ञानरूपी वृक्ष की मञ्जरी है। जैसे अपने विचार से राजा जनक को प्रात्मबोध हुमा तैसे ही तुमको भी प्राप्त होगा। जैसे सूर्यमुखी कमल सूर्य को देखकर प्रसन्न होता है तैसे ही इस विचार से तुम्हारा हृदय प्रफुल्लित हो आवेगा और मन का मननभाव जैसे बरफ का कणका सर्य से तप्त हो गल जाता है शान्त हो जावेगा। जब महं त्वंपादि रात्रि विचाररूपी सूर्य से क्षीण हो जावेगी तब परमात्मा का प्रकाश साक्षात होगा, भेदकल्पना नष्ट हो जावेगी और अनन्त ब्रह्माण्ड में जो व्यापक प्रात्मतत्त्व है। वह प्रकाशित होगा। जैसे अपने विचारसे जनक ने अहंकाररूपी वासना का त्याग किया है तैसे ही तुम भी विचार करके अहंकाररूपी वासना का त्याग करो अहंकाररूपी मेघ जब नष्ट होगा और चित्ताकाश