पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/६०

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योगवाशिष्ठ।

युवावस्था में स्त्री पुत्रादिक उसकी टहल करते थे पर वही सब उसको वृद्धावस्था में जैसे वृद्ध बैल को बैलवाला त्याग देता है वैसे ही त्याग देते हैं, देखके हँसते हैं भोर अपमान करते हैं। उनको वह तब ऊँट की नाई भासता है। हे मुनीश्वर! ऐसी नीच अवस्था की मुझको इच्छा नहीं! अब जो कुछ कर्तव्य हो मुझसे कहिए मैं करूँ? इस शरीर की तीनों अवस्था में कोई सुखदायी नहीं, क्योंकि बाल्यावस्था महामूढ़ है, युवावस्था महाविकारवान् है और जरावस्था महादुःख का पात्र है। बाल्यावस्था को युवावस्था ग्रास कर लेती है; युवावस्था को जरावस्था पास कर लेती है और जरावस्था को मृत्यु पास कर लेती है। यह अवस्था सब अल्पकाल की हैं, इनके आश्रय से मुझको क्या सुख होगा? इससे आप मुझे वही उपाय बताइये जिससे इस दुःख से मुक्त हो जाऊँ। हे मुनीश्वर! जब जरावस्था आती है तब मरना भी निकट आता है। जैसे सन्ध्या आनेसे रात्रि तत्काल आ जाती है और जो सन्ध्याके आनेसे दिन की इच्छा करते हैं वह मूर्ख हैं वैसे ही जरा के जाने से जीने की आशा रखनी महामूर्खता है। हे मुनीश्वर! जैसे विल्लीचिन्तन करती है कि चूहा भावे तो पकड़ लूँ वैसे ही मृत्यु भी देखती है कि जरावस्था भावे तो मैं इसका पास करवू। हे मुनीश्वर! यह परम नीच अवस्था है। यह जब आती है तब शरीर को जर्जरीभूत कर देती है; कँपाने लगती है और शरीर को निर्वल और क्रूर कर देती है। जैसे कमल पर वरफ की वर्षा हो और वह जर्जरीभूत हो जाय वैसे ही यह शरीर को जर्जरीभूत कर डालती है। जैसे वन में बाघ आ कर शब्द करते हैं और मृग का नाश करते हैं वैसेही खाँसी रूपी बाघ आकर मृगरूपी वल का नाश करते हैं। हे मुनीश्वर! जब जरा आती है तब जैसे चन्द्रमा के उदय से कमलिनी खिल आती है वैसे ही मृत्यु प्रसन्न होती है। यह जरावस्था बड़ी दुष्टा है; इसने बड़े-बड़े योधों को भी दीन कर दिया है। यद्यपि बड़े-बड़े शूर संग्राम में शत्रुओं को जीतते हैं पर उनको भी जरा ने जीत लिया है। जो बड़े-बड़े पर्वतों को चूर्ण कर डालते हैं उनको भी जरा पिशाचिनी ने माहादीन कर दिया है। इस जरारूपी राक्षसी ने सबको दीन कर दिया है। यह सबको जीतनेवाली है। हे मुनीश्वर! जैसे वृक्ष में अग्नि लगती और उसमें