पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/६१२

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योगवाशिष्ठ।

तेरी माता कौन है और पिता कौन है, यह सब मिथ्याश्रम से भासता है वास्तव में कुछ नहीं। शरीर से देखिये तो जो कुछ शरीर हे वह पञ्चतत्त्वों से रचा जरूप है, उसमें चैतन्य एकरूप है और अपना ओर पराया कौन है। इस भ्रमदृष्टि को त्याग के तत्त्व का विचार करो, मिथ्या भावना करके माता पिता के निमिच क्यों शोकवान हुए हो? जो सम्यकदृष्टि का आश्रय करके उस स्नेह का शोक करते हो तो और जन्मों के बान्धव और मित्रों का शोक क्यों नहीं करते? अनेक पुष्पों और बताओं में तू मृगपुत्र हुआ था, उस जन्म के तेरे अनेक मित्र बान्धव थे उनका शोक क्यों नहीं करता अनेक कमलों संयुक्त तालाब में हाथी विचरते थे वहाँ तू हाथी का पुत्र था, उन हस्ति बान्धवों का शोक क्यों नहीं करता? एक बड़े वन में वृक्ष लगे थे और तेरे साथ फल पत्र हुए थे और अनेक वृक्ष तेरे बान्धव थे उनका शोक क्यों नहीं करता? फिर नदी तालाब में तुम मच्छ हुए थे और उसमें मच्छयोनि के वान्धव थे। उनका शोक क्यों नहीं करता? दशार्णव देश में तू काक मोर वानर हुआ, तुषार्णदेश में तु राजपुत्र हुआ और फिर वनकाक हुआ, बङ्गदेश मेंतू हाथी हुआ, बिराजदेश में तू गर्दभ हुआ, मालवदेश में सर्प और वृक्ष हुआ और बादेश में गृद्ध हुआ, मालवदेश के पर्वत में पुष्पलता हुआ और मन्दराचल पर्वत में गीदड़ हुआ, कोशलदेश में ब्राह्मण हुआ, बङ्गदेश में तीतर हुआ, तुषारदेश में घोड़ा हुआ, कीट अवस्था में हुआ, एक नीच प्राम में बछरा हुआ और पन्द्रह महीने वहाँ रहा, एक वन में तड़ाग था वहाँ कमलपुष्प में भ्रमरा हुआ और जम्बूदीप में तू अनेक बार उत्पन्न हुआ है। हे भाई! इस प्रकार वासनापूर्वक वृत्तान्त मैंने कहा है। जैसी तेरी वासना हुई है तैसे तूने जन्म पाये हैं। मैं सूक्ष्म और निर्मलबुद्धि से देखता हूँ कि ज्ञान बिना तूने अनेक जन्म पाये हैं। उन जन्मों को जानके तू किस किस बान्धव का शोक करेगा और किसका स्नेह करेगा? जैसे वे बान्धव थे तेसे ही यह भी जान ले। मेरे भी अनेक बान्धव हुए हैं, जिन जिनमें मैंने जन्म पाया है और जो जो बीत गये हैं तैसे ही सब मेरे स्मरण में आते हैं और अब मुझको