पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/६२१

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उपशम प्रकरण।

महासर्प और किन्नरों संयुक्त अति बली हैं तो भी सब ओर से यत्न करने से वश होते हैं। इससे उसको वश कर।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे उपशमप्रकरणे बलिवृत्तान्तविरोचन-
गाथानाम त्रयोविंशतितमस्सर्गः ॥ २३ ॥

बलि ने पूछा, हे भगवन्! किस उपाय से वह जीता जाता है और ऐसा महावीर्यवान मन्त्री कौन है और राजा कौन है? यह वृत्तान्त सब मुझको शीघ्र ही कहिये कि उपाय करूँ। विरोचन बोले, हे पुत्र! स्थित हुआ भी त्यागने योग्य है। ऐसा मन्त्री जिस उपाय से जीतिये सो भली प्रकार कहता हूँ सुन। उस युक्ति के ग्रहण करने से शीघ्र ही वश होता है, युक्ति बिना नाश नहीं होता। जैसे बालक को युक्ति से वश करते हैं तैसे ही जो पुरुष युक्ति से उस मन्त्री को वश करता है उसको राजा का दर्शन होता है और उससे परमपद पाता है। जब राजा का दर्शन होता है तब मन्त्री वश हो जाता है और उस मन्त्री के वश करने से फिर राजा का दर्शन होता है। जब तक राजा को न देखा तब तक मन्त्री वश नहीं होता और जब तक मन्त्री को वश नहीं किया तब तक राजा का दर्शन नहीं होता। राजा के देखे बिना मन्त्री का जीतना कठिन है और मन्त्री के जीते बिना राजा को देखना कठिन है। इस कारण दोनों का इकट्ठा अभ्यास कर। राजा का दर्शन और मन्त्री का जीतना अपने पुरुष प्रयत्न और शनैःशनैः अभ्यास से होता है और दोनों के सम्पादन से मनुष्य शुभता को प्राप्त होता है। जब तू अभ्यास करेगा तब उस देश को प्राप्त होगा, यह अभ्यास का फल है। हे दैत्यराज! जब उसको पावेगा तब रञ्चक भी शोक तुमको न रहेगा और सब यत्नों से शान्त होकर नित्य प्रफुल्लित और प्रसन्न रहेगा। जो साधुजन हैं वे सब संशयों से रहित उस देश में स्थित होते हैं। हे पुत्र! सुन, वह देश अब मैं तुझसे प्रकट करके कहता हूँ। देश नाम मोक्ष का है जहाँ सब दुःख नष्ट हो जाते हैं और राजा उस देश का आत्म भगवान् है जो सब पदों से अतीत है। उस महाराज ने मन्त्री मन को किया है सो मन परिणाम को पाकर सर्व ओर से विश्वरूप हुआ है। जैसे मृत्तिका का पिण्ड घट-