स्थानों में बैठी थीं वे अब देवाङ्गनाओं के शिर पर चमर करती हैं और वे हास विलास करती हैं, यह बड़ा कष्ट है। हमको आपदा ने दीन किया है। हे दैत्यों! हमको और उपाय कोई दृष्टि नहीं आता जब उस ही विष्णु की शरण में जावें तब सुखी होंगे वह कैसा पुरुष है, जिसके दो भुजारूपी वृक्षों की छाया में देवता विश्राम करते हैं और जैसे हिमालय पर्वत कदाचित् तपायमान नहीं होता तैसे ही जो पुरुष विष्णु की शरण जाता है वह तपायमान नहीं होता। तुम देखते हो कि जो देवाङ्गना असुरों की स्त्रियों का पूजन करती थीं वे अब अपने को पुजाने लगी हैं और हम दैत्यों की स्त्रियों के मुख कुम्हिला गये हैं। जैसे बरफ की वर्षा से कमल सूख जाता है तैसे ही हमारे मण्डप टूट गये हैं और नीलमणि के खम्भे गिर पड़े हैं। दैत्य सेना जो आपदा के समुद्र में डूबती थी उसके रक्षा करने को हमारे पितादि बड़े समर्थ थे और डूबने न देते थे। जैसे क्षीरसमुद्र में मन्दराचल को कच्छपरूप ने डूबने न दिया था हमारे पितादि जो बड़े बड़े बली रक्षा करनेवाले थे उनको विष्णुजी ने मारके चूर्ण किया-प्रलयकाल का पवन पर्वतों को चूर्ण करता है। ऐसे मधुसूदन की गति अति विषम है वे दैत्यों की भुजारूपी दण्ड के काटनेवाले कुठार हैं, उनकी सहायता से इन्द्रादिक देवता दैत्य सेना को जीतने और मारने लगे हैं-जैसे बालक को वानर मारें। इस पुण्डरीकाक्ष विष्णु को जीतना कठिन है। जो वे शस्त्रों बिना हों तो भी हमारे शस्त्र इनको छेद नहीं सकते और वज्र भी छेद नहीं सकता। वे महापराक्रमी हैं उन्होंने युद्ध का बड़ा अभ्यास किया है और पर्वतों के साथ युद्ध करते रहे हैं। हमारा पिता जो बड़ा बली था और जिसने त्रिलोकी के राजा और सब देवता वश किये थे उसको भी इसने मार डाला तो हमारा मारना कौन कठिन है। यह महाबली है इसको हम नहीं जीत सकते, इसलिये एक उपाय मैं तुमसे कहता हूँ उससे विष्णु वश होंगे। उपाय यह है कि विष्णु जो सर्वात्मा, सबका प्रकाश और सबका कारण है उसकी हम शरण हों, और हमारी कोई गति आश्रय नहीं। हे दैत्यों! उससे अधिक इस त्रिलोकी में कोई नहीं, जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और