पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/६३९

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उपशम प्रकरण।

बाला कुठार हे सो दैत्यरूपी वृक्षों को काटनेवाला है और साधुधों को आनन्ददायक है। यह मेरे हाथ में शार्ङ्गधनुष है, इसकी महाप्रकाशवत् ध्वनि है। यह मेरे पीतवर्ण वस्त्र है यह वैजयन्तीमाला है और कौस्तुभमणि मेरे कण्ठ में है। ऐसा मैं विष्णुदेव हूँ। अनन्त जगत् जो उत्पत्ति और जय हो गये हैं सबों का धारनेवाला हैं। यह पृथ्वी मेरे चरण हैं, आकाश मेरा शीश है तीनों लोक मेरा वपु है, दशोदिशा मेरे वक्षःस्थल हैं और मैं साक्षात् विष्णु हूँ। नील मेघवत् मेरी कान्ति है, गरुड़ पर आरूढ़, शंख, चक्र, गदा, पद्म का धारनेवाला हूँ। जिसका चित्त दुष्ट है वह हमको देखकर भाग जाता है। यह सुन्दर, शीतल चन्द्रमावत् मेरी कान्ति है और पीतवस्त्र श्याम वदन गदाधारी हूँ। लक्ष्मी मेरे वक्षस्थल में है और अच्युतरूपी विष्णु मैं हूँ। वह कौन है जो मेरे साथ विरोध कर सके? मैं त्रिलोकी जला सकता हूँ, जो मेरे साथ युद्ध करने को सम्मुख आवे उसको मैं नाश का कारण हूँ। जैसे अग्नि में पतङ्ग जल मरते हैं तैसे ही मेरा तेज है। मेरी दृष्टि कोई सह नहीं सकता। मैं विष्णु ईश्वर हूँ, ब्रह्म, इन्द्र और यमादिक नित्य मेरी स्तुति करते हैं और तृणकाष्ठ स्थावर जङ्गम जो कुछ जाल है सबके भीतर व्यापकरूप हूँ। त्रिलोकी में मैं प्रकाशरूप अजन्मा और भयनाशकर्ता हूँ। ऐसा मेरे स्वरूप को मेरा नमस्कार है।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे उपशमप्रकरणे प्रह्लादविज्ञानन्नाम
एकत्रिंशत्तमस्सर्गः ॥ ३१ ॥

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! इस प्रकार प्रह्लाद ने अपना नारायण- स्वरूप करके ध्यान किया। फिर पूजन के निमित्त विष्णु का चिन्तन किया और मन में विष्णुजी की दूसरी मूर्ति जो गरुड़ पर आरूढ़ और चार शक्ति अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से सम्पन्न चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये श्याम रङ्ग है, चन्द्रमा और सूर्य की नाई सुन्दर नेत्र हैं और हाथ में शार्ङ्गधनुष है, धारण करके परिवारसंयुक्त भली प्रकार धूप दीप और नाना प्रकार के विचित्र वस्त्र और भूषणों सहित पूजन किया और अर्घ दिया। चन्दन का लेपन, धूप, दीप, नाना प्रकार के भूषणों सहित पिस्ता, खजूर, बादाम आदिक मेवों से भक्ष्य, भोज्य, चोष्य, और