पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/७३

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वैराग्य प्रकरण।

युक्त दृष्टि आते हैं वे भी अन्धकाररूप हो जावेंगे। अमृत से पूर्ण चन्द्रमा भी शून्य हो जायगा और सुमेरु आदिक पर्वत, सब लोक, मनुष्य, देवता, यक्ष और राक्षस सब नष्ठ होंगे। इससे हे मुनीश्वर! और किसी का क्या कहना हे ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र जगत् के ईश्वर भी शून्य हो जायँगे। जो कुछ जगत् दृष्टि आता है और स्त्री, पुत्र, बान्धव, ऐश्वर्य, वीर्य और तेज से युक्त नाना प्रकार के जो जीव भासते हैं वे सब नाशरूप हैं, फिर मैं किस पदार्थ का आश्रय करूँ और किसकी इच्छा करूँ? हे मुनीश्वर! जो पुरुष दीर्घदर्शी है उसको तो सब पदार्थ विरस हो गये, वह किसी पदार्थ की इच्छा नहीं करता, क्योंकि उसे तो सब पदार्थ नाशरूप भासते हैं और वह अपनी आयु को बिजली के चमत्कारवत् देखता है। जिसको अपनी आयु की प्रतीति होती है सो किसी की इच्छा नहीं करता। जैसे किसी को बलिदान के अर्थ पालते हैं तो वह खाने पीने और भोगने की इच्छा नहीं करता वैसे ही जिसको अपना मरना सम्मुख भासता है उसको भी किसी पदार्थ की इच्छा नहीं रहती। ये सब पदार्थ आप ही नाशरूप हैं तो हम किसका आश्रय करके सुखी हों। जैसे कोई पुरुष समुद्र में मच्छ का आश्रय करके कहे कि मैं इस पर बैठकर समुद्र के पार जाऊँगा और सुखी होऊँगा तो वह मूर्खता से डूब ही मरेगा वैसे ही जिस पुरुष ने इन पदार्थों का आश्रय लिया है और उन्हें अपने सुख के निमित्त जानता है वह नष्ट होगा। हे मुनीश्वर! जो पुरुष जगत् को चितवता रहता है उसको यह जगत् रमणीय भासता है और जो रमणीय जानकर नाना प्रकार के कर्म करता है और नाना प्रकार के सङ्कल्प करके जगत् में भटकता है, उसी को यह भटकाता है। जैसे पवन से धूलि कभी ऊँचे और कभी नीचे आती है स्थिर नहीं रहती वैसे ही यह जीव भटकता फिरता हे स्थिर कभी नहीं रहता और जिस पदार्थ की इच्छा करता है वह सब काल का ग्रास है। ईधनरूपी जगत् वन में कालरूपी अग्नि लगी उसने सबको प्रास लिया है। जो इन पदार्थों की इच्छा करते हैं वे महामूर्ख हैं। जिनको आत्मविचार की प्राप्ति है उनको यह जगत् भ्रमरूप भासता है और जिसको आत्मविचार की प्राप्ति नहीं