पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/७९

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वैराग्य प्रकरण।

आदिक मंत्री, राजा दशरथ और मण्डलेश्वर, चाकर, नौकर और माता कौशल्या आदिक सब मौन होगये—अर्थात् अचल हो गये। पिंजड़े में जो तोते और बगीचे में पशु प्रादि थे, जो पक्षी आलय में बैठें थे वे भी सुन कर मौन हो गये। आकाश के पक्षी जो निकट थे वे भी स्थिर हो गये और आकाश में देव, सिद्ध, गन्धर्व, विद्याधर और किन्नर भी आके सुनने और फूलों की वर्षा करने तथा सब धन्य धन्य शब्द करने लगे। उस समय फूलों की ऐसी वर्षा हुई मानों वरफ की वर्षा होती है, और क्षीरसमुद्र के तरङ्ग उछलते पाते थे मानो मोती की माला की दृष्टि होने लगी। जैसे माखन के पिंड उड़ते हों इस प्रकार आधी घड़ी पर्यन्त फूलों की वर्षा हुई और बड़ी सुगन्ध फैली। फूलों पर भँवरे फिरने लगे और बड़ा विलास उस काल में हुआ। सब "नमोनमः" शब्द करने लगे और देव बोले हे कमल नयन, रघुवंशी! आकाश में चन्द्रमारूप तुम धन्य हो तुमने बड़े श्रेष्ठ स्थान देखे हैं और बहुत प्रकार के वचन सुने हैं। जैसे तुमने वचन कहे हैं वैसे हमने कभी नहीं सुने। यह वचन सुनके हमारा जो देवतों का अभिमान था सो सब निवृत्त हो गया और अमृत रूपी वचन सुनकर हमारी बुद्धि पूर्ण हो गई। हे राम जी! जैसे वचन तुमने कहे हैं ऐसे बृहस्पति भी नहीं कह सकते। तुम्हारे वचन परमानन्द के करनेवाले हैं इमसे तुम धन्य हो।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे वैराग्यप्रकरणे सिद्धसमाजवर्णनन्नाम
सप्तविंशतितमस्सर्गः॥२७॥

वाल्मीकिजी बोले, हे भारद्वाज! सिद्ध ऐसे वचन कहके विचारने लगे कि रघुवंश का कुल पूजने योग्य हैं, जिससे रामजी ने बड़े उदार वचन मुनीश्वर के सम्मुख कहे हैं। अब जो मुनीश्वर उत्तर देंगे वह भी सुनना चाहिए। जैसे फूल के ऊपर भँवरा स्थिर होता है वैसे ही व्यास, नारद, पुलह, पुलस्त्य आदि सब साधु सभा में स्थित हुए तब वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि मुनीश्वर उठ खड़े हुए और उनकी पूजा करने लगे। पहिले राजा दशरथ ने पूजा की और फिर नाना प्रकार से सबने उनकी पूजा की और यथायोग्य आसन के ऊपर बैठे। उनमें नारदजी हाथ में बहुत