पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/८१६

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योगवाशिष्ठ। का स्पन्द गेका तब चित्त अचित हो जाता है। एक प्राणों के रोकने से ही वासना क्षय हो जाती है, तब भी चित्त प्रचित्त हो जाता है। भात्म- योग से अथवा वासना के त्याग से प्रात्मतत्त प्रकाशेगा। इनमें जो तुम्हारी इच्छा हो वही कर्ग, चाहे पाणों को योग से रोको और चाहे वासना का त्याग करो। प्राणायाम तब होता है जब गुरु की दी हुई युक्ति स्थित होती है और भासन और पाहार के संयम से प्राणों का स्पन्द रोका जाता है। जब सम्यवान से जगत् को अवास्तव जानता है तैसे वासना नहीं प्रवर्तती । जो जगत् के भादि और अन्त में स्थित है उसमें मन जब स्थित होता है तब वासना नहीं उपजती। हे रामजी। जब व्यवहार में नि:संग भोर संसार की भावना से विवर्जित होता है और शरीर में असत् बुद्धि होती है तब भी वासना नहीं प्रवर्तती और जब विचार करके वासना क्षय हो तब चित्त भी नष्ट हो जावेगा जैसे वायु के ठहरने से घूल नहीं उड़ती तेसे ही वासना के क्षय हुए चित्त नहीं उपजता । जो पाणस्पन्द है वही चित्तस्पन्द है। जब वासना फुरती है तब जगभ्रम उपजता है । जैसे पवन से धूल उपजती है तैसे ही चित्त से वासना उपजती है जब पाणस्पन्द ठहरता है तब चित्त भी ठहर जाता है, इससे यत्न करके प्राणस्पन्द अथवा वासना के जीतने का अभ्यास करो तब शान्तिमान होगे और जो यह उपाय न करो और दूसरे यत्न से चित्त वश करने का उपाय करोगे तो बहुत काल में प्रात्म- पद को पावोगे। हे रामजी! इस युक्ति के बिना मन के जीतने का और कोई उपाय नहीं है। जैसे मतवाले हाथी को अंकुश विना वश करने का उपाय और कोई नहीं तैसे ही मन भी युक्ति बिना वश नहीं होता। वह युक्ति यह है कि सन्तों की संगति भौर शदशास्त्रों का विचार करना । इस उपाय से तत्त्वज्ञान, वासनामय और प्राणों का स्पन्द रोकना होता है। चित्त वश करने की यह परमयुक्ति है-इसमे चित्त शीघ्र ही जीता जाता है। जो इन उपायों का त्यागकर हठ से मन वश किया चाहते हैं वे क्या करते हैं ? जैसे तम के नाश करने को दीपक जलावे तो नाश हो जाता है और शाबों से तम को काटे तो तम नाश न