पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/११४

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महेश्वरवर्णन-निर्वाणकरण ६. (९९५) सो हमारा परम पिता आत्मा है, सर्वका मूल बीज वही देव है, सब तिसते उपजे हैं, जैसे वृक्षते पत्र उपजते हैं, तैसे सब महादेवते उपजते हैं, सर्वका अनुभवकता वही है, सर्वको सत्ता देनेहारा वही है, सब प्रका- शका प्रकाश वही है, सो तत्त्ववेत्ताकरि पूजनेयोग्य है, सर्वविर्षे प्रत्यक्ष हैं, सर्वदा सर्वप्रकार सर्वविषे उदित आकार चेतन अनुभवरूप है, तिसके आवाहनविषे मंत्र आसन आदिक सामग्री नहीं चाहिये, काहेते कि सर्वदा अनुभवरूप कारकै प्रत्यक्ष है, अरु सर्वप्रकार सर्व ठौरविणे विद्यमान है, जहाँ जहाँ तिसते पानेका यत्न करिये, तहाँ आगेही विद्य- मान है, वह शिवतत्त्व आदिही सिद्ध है, मन वाणीविषे तीनों रूप वही हो भासता है, सबकी आदि है, अरु पूजनेयोग्य है, अरु नम- स्कार करनेयोग्य भी वही है, अरु जाननेयोग्य भी वही है । हे सुनी- श्वर ! ऐसा जो आत्मतत्त्व है, सो जरा मृत्यु शोक भयके काटनेहारा है, तिसको आपकार आपही देखता है, तिसके साक्षात्कार हुए चित्त भूने बीजकी नाई हो जाता है, बहुरि नहीं उगता, सो शिवतत्त्व जीवका जीव, है, सर्व पदका पद् वही है, अनुभवरूप है, आत्मा है, परमपद है, इतर दृष्टिका त्याग करीं ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निवणप्रकरणे ईश्वरोपाख्याने देवनिर्णयवर्णनं नाम चतुस्विशत्तमः सर्गः ॥ ३४ ॥ पंचत्रिंशत्तमः सर्गः ३५. महेश्वरवर्णनम् ईश्वर उवाच ॥ हे मुनीश्वर ! सो चिद्रूपतत्त्व सर्वके अंतर स्थित है, अरु अनुभवमय शुद्ध देव ईश्वर है, सब बीजका बीज वही है, सर्व सारका सार वही है, कर्मका कर्म, धर्मका धर्म वही है, सो चेतन धातु निर्मलरूप सब कारणका कारण वही है, अरु आप अपना कारण है; सर्व भाव अभा- वका प्रकाशक वही है, सर्व चेतनका चेतन वही है, परमप्रकाशरूप है, भौतिक प्रकाशते रहित है; अलौकिक प्रकाशक है, सर्व जीवका जीव | वही है, चेतनघन निर्मल आत्मा अस्ति सन्मयरूप है, सवअसते रहित