पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/११६

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ईश्वरोपाख्याने नीतिनृत्यवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (९९७) होकार फुरता है, वही फूलगुच्छेरूप होकार स्थित होता हैं,आपही तिस- विषे सुगंधहोकार स्थित होता है, घ्राणइंद्रियविषे स्थित होकर आपही हूँघता है, आपही त्वचा इंद्रिय होता है, आपही पवन होकार चलता हैं, आपही स्पर्शकारि ग्रहण करता है, आपही जलरूप होता हैं, आपही वायु होकर सुखावता है, आपही श्रवणेंद्रिय होकर, आपही शब्द होकर, आपही ग्रहण करताहै, इसी प्रकार जिह्वा त्वचा नासिका कर्ण नेत्र होकर आपही स्पर्श रूप रस गंध शब्दको ग्रहण करता है, उसीने पदार्थ रचे हैं, उसीने नीति रची है, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, शिव पंचम ईश्वर सदाशिव तिसपर्यंत वही देव, इसप्रकार हुआ हैं, आपही साक्षीवर स्थित होता है, जैसे दीपकके प्रकाशकार मंदिरकी सर्व क्रिया होती है, तैसे संसार- रूपी मंडपकी सब क्रिया साक्षीकार होती हैं, तिसविषे उसकी शक्ति नृत्य करती है, अरु आप साक्षीरूप होकर देखता है । वसिष्ठ उवाच ।। हे जगन्नाथ ! शिवकी शक्ति क्या है, अरु कैसे स्थित है, अरु देवको साक्षात् कैसे है, अरु तिसका नृत्य कैसा होता है ? ॥ ईश्वर उवाच ॥ हे मुनीश्वर | आत्मतत्त्व स्वभावते अचल है, अरु शतरूप है, शिव परमात्मा निर्मल चिन्मात्ररूप निराकार है, तिसकी आसक्ति इच्छा- शक्ति है, कालशक्ति है, नीतिशक्ति है, मोहशक्ति है, ज्ञानशक्ति है, क्रियाशक्ति है, कर्ताशक्ति है, परंतु स्वरूपते सदा अकर्ता है इत्यादिक आत्माकी शक्ति हैं, तिन शक्तिका अंत नहीं, अनंतरूप चिन्मात्र देव है, यह जो मैं तुझको शक्ति कही है, सो भी शिवरूप हैं, भिन्न नहीं, जो कर्तृत्व भौतृत्व साक्षिता आदिक भावनाते शक्ति विविधरूप धारा है, शिव अरु शक्ति एकरूप है, अरु बहुत भासती है, पदार्थविपे अर्थशक्ति है, आत्माविषे साक्षीशक्ति कल्पित है, तैसे कालशक्ति है, नृत्यकी नाईं ब्रह्मांडरूपी नृत्यमंडलविषे नृत्य करती है, क्रियाशक्ति कर्तृत्वकर नृत्य करती है, इत्यादिक शक्ति कहाती है, जैसे आदि नीति हुई है, ब्रह्माते लेकर तृणपर्यंत तैसेही स्थित है, अन्यथा नहीं होती ॥ हे मुनीश्वर । यह संपूर्ण जगत् नृत्य करता है, संसाररूपी नटनी है, तिसके प्रेरणेदारी नीति है, अरु परमेश्वर परमात्मा है, सो साक्षीरूप