पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१३

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योगवासिष्ठ ।



जलने लगे, जैसे मनसों जगत्की सत्ता निवर्त होवै; अरु वृत्ति सकुचती जाती है, तैसे सूखते जाते हैं अरु बालक जो समाविषे बैठे थे,अरु पिंजरोंविषे पक्षी खेलनेको बैठे थे तिनके भोजनका समय हुआ बालकोंके भोजननिमित्त माता उठी, अरु चौथे प्रहर राजाकी नौबत,नगारे, भेरी, शहनाई बाजने लगीं, वसिष्ठजी जो बडे ऊंचे स्वरसे कथा करते थे, तिनका शब्द नगारे वाजिंत्रोंकरि आच्छादि गया, जैसे वर्षोंकालका मेघ गर्जता है, अरु मोर तूष्णीं होजाते हैं तैसे वसिष्ठजी तूष्णीं हो गये. ऐसा शब्द हुआ जिसकार आकाश पृथ्वी सब दिशा भर रहीं,पिंजरेविषे पक्षी भडभड शब्द करने लगे, पंखोंको पसारकर जैसे भूकम्प हुएते लोक कम्पते शब्द करते हैं, तैसे पक्षी भडकने लगे, बालक थे सो माताकी त्वचासे मिल गये, बडा शब्द हुआ, तिसके अनन्तर मुनिशार्दूल वसिष्ठजी सबके मध्यविषे बोले ॥ हे निःपाप रघुनाथ !में तेरे चित्तरूपी पक्षीके फैंसावने निमित्त अपने वाक्रूपी जाल पसारी हैं, तिसते अपने चित्तको वश कारकै आत्मपदविषे जोड। हे रामजी !यह जो मैं तुझको उपदेश किया हैं, तिसका जो सार है; तिसविषे दुर्बुद्धिको त्यागिकार चित्तको लगाव, जैसे हँस जलको त्यागिकारि दूधको पान करता है, तैसे सब उपदेश आदिते लेकरि अन्तपर्यंत वारंवार विचारकरि सारको अंगीकार कर; इसप्रकार संसारसमुद्रते पार उतारकर परमपदको प्राप्त होवैगा अन्यथा न होवैगा॥हे रामजी। जब ईन वचनोंको अंगीकार करेगा, तब संसारसमुद्रको तर जावैगा, अरु जो अंगीकार ने करैगा, तौ नीचगतिको प्राप्त होवैगा, जैसे विंध्याचल पर्वतकी खातविषे इस्ती गिरा कष्ट पाता है, तैसे संसारविषे कष्ट पावैगा । हे रामजी! येजो मेरे वचन हैं, इनको ग्रहण न करैगा, तो अधको गिरैगा, जैसे पंथी हाथविषे दीपक त्यागिकरि रात्रिकेविषे दोहेपर गिरता है तैसे गिरेगा, अरु जो असंग होकरि व्यवहारविषे विचरैगा, तौ आत्मसिद्धताको प्राप्त होवैगा, यह जो मैं तुझको तत्त्वज्ञान अरु मनोनाश अरु वासनाक्षय कहेहैं, यह अभ्यासकार सिद्धताको प्राप्त होगा, यह शास्त्रका सिद्धांत है । हे सभा ! हे महाराजो राम लक्ष्मण भूपति ! जो कछु मैंने तुमको कहा है। तिसको तुम विचारौ, अरु और जो कछु कहना है, सो प्रातःकाल