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दिवसरात्रिव्यापारवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६.


कहौंगा ॥ वाल्मीकि रुवाच॥ हे साधो ! इसप्रकार जब मुनीश्वरने कहा तब सब सभा उठ खड़ी हुई, अरु वसिष्ठके वचनोंको पाइकार सब खिलं आये, जैसे सूर्यको पाइकरि कमल खिलि आता है, तैसे सब खिलि आये, अरु वसिष्ठ विश्वामित्र दोनों इकट्टे उठे, वसिष्ठजी विश्वामित्रको अपने आश्रमको लेगये, अरु आकाशचारी जो देवता थे,अरु सिद्ध थे,सो वसिष्ठजीको नमस्कार करके अपने अपने स्थानोंको गये, राजा दशरथ अध्य पाद्य कारे वसिष्ठजीको पूजतभये, पूजाकार अपने अंतःपुरविषे गये, और श्रोता भी आज्ञा लेकर वसिष्ठजीको पूजते भये, पूजाकरि अपने अंतःपुरविषे गये, और श्रोता भी आज्ञा लेकर अपने अपने स्थानोंको गये, राजकुमार अपने मंडलको गये, मुनीश्वर वनको गये,राम लक्ष्मण शत्रुघ् वसिष्ठजीके आश्रमको गये, पूजाकारकै बहुरि अपने गृहमें आये, तब श्रोताअपने अपने स्थानको जाइकार स्नानसंध्यादिक कर्म करते भये, बहुरि पितृदेवताको पूजते भये, बहुरि ब्राह्मणते लेकरि भृत्यपर्यंत सबको भोजन कराइकर अपने मित्र भाइयोंके साथ भोजन किया, बहुरि यथाशक्ति अपने वर्णाश्रमके धर्मको साधते भये, तब सूर्य भगवान् अस्त हुए, दिनकी क्रिया निवर्त्त हो गई, रात्र आनि प्राप्त भई निशाचर आय विचरने लगे, तब भूचर अरु राजर्षिब्रह्मर्षि राजपुत्र जेते कछु श्रोते थे सो रात्रिको एकतं बैठकरि अपनी शय्या बिछाइकार विचारते भये, राजकुमार राजा अपने स्थानों पर बैठे, ब्राह्मण तपस्वी सो कुशादिक बिछाइकरि विचारते भये, कि संसारकेतरणका उपाय क्या कहैं हैं, वसिष्ठजीने वचन कहे हैं, तिनविपेभले प्रकारचित्तकोएकाग्रकरते भये, एक प्रहार भले प्रकार विचारकरि निद्राको प्राप्त भये, जैसे सूर्य उदय हुए पद्मिनियां मुँदि जाती हैं, तैसे सुषुप्तिको प्राप्त भये, अरु राम लक्ष्मण शत्रुघ्न तीनप्रहर वसिष्ठजीके उपदेशको विचारते रहे, अर्ध प्रहर सोए, बहुरि उठे, इसप्रकार सब विचारपूर्वक रात्रिको चिंतायुक्त भये प्रातःकाल होनेपर आया, सूर्यके प्रकाशकरि चंद्रमाकी कांति जाती रही चंद्रमुखी कमल बँद गये ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे दिवस त्रिव्यापारवर्णनं नाम प्रथमः सर्गः ॥ १॥