पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१४०

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सत्तौपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१०२१) सुषुप्तवत् स्थित है, तिसविषे जगत् कछु फुरा नहीं, शिलाकी रेखावत् है, जैसे बिलके अंतर मजा स्थित होती है, तैसे ब्रह्मविषे जगत् स्थित है, जैसे आकाशविषे शून्यता होती हैं, जैसे जलविषे द्रवता होती है, जैसे वायुविषे स्पंदता होती है, तैसे ब्रह्मविषे जगत है, ब्रह्म अरु जगतविषे भेद कछु नहीं, जैसे तरुअरु वृक्षविषे भेद कछुनहीं, तैसे ब्रह्म अरु जगविषे भेद कछु नहीं ब्रह्मही जगत है, जगतही ब्रह्म है। हे रामजी । भाव अभाव भेदकल्पनाकोऊनहीं,ब्रह्मसत्ताहीप्रकाशतीहै,ब्रह्मसत्ताहीजगतरूपहोकार भासती है, जैसे मरुस्थलविषे सूर्यको किरणें जलरूप होकर भासती हैं, तैसे ब्रह्म जगतरूप होकरि भासता है ॥ हे रामजी ! सुमेरु आदिकं पर्वत अरु तृण वन अरुचित्त जगत् परिणामते लेकार भूतको विचार देखिये तौ परमसत्ताही भासती है, सम पदार्थविष स्थूल अरु सूक्ष्म भावकार वही सत्ता व्यापी है, जैसे जलकारस वनस्पतिविषे व्यापा हुआ है, तैसे सब जगतविषे सूक्ष्मता कारकै आत्मसत्ता व्यापी हुई है, जैसे एकही रस- सत्ता वृक्ष तृण गुच्छेविषे व्यापी हुई हैं, अरु एकही अनेकरूप होकार भासती है, तैसे एकही ब्रह्मसत्ता अनेकरूप होकर भासती है । हे राम- जी ! जैसे मोरके अंडविषे अनेक रंग होते हैं, जब अंड फूटता है, तब शनैः शनैः अनेक रंग तिसते प्रगट होते हैं, सो एकही रस अनेकरूप हो भासता है, तैसे एकही आत्मा अनेकरूप जगत आकार होकार भासता है, जैसे मोरके अंडविषे एकही रस होता है, परंतु जो दीर्घसूत्री अज्ञानी हैं, तिनको भविष्यत् अनेक रंग उसविषे भासते हैं, सो अनउपजेही उपजे भासते हैं, तैसे यह जगत् अनउपजाही नानात्व अज्ञानीके हृदय विष स्थित होता है, अरु जो ज्ञानवान हैं, तिनको एकरस ब्रह्मसत्ता भासती है, जैसे मोरका रस परिणामको नहीं प्राप्त भयो, एकरस है, अरु जब परिणामको प्राप्त होकार नानारूप भया, तब भी एकरस हैं, तैसे यह जगत् परमात्माविषे गुह्य है, तौभी परमात्माही है, अरु जब नाना- रूप होकार भासता है, तो भी वही है परिणामको नहीं प्राप्त भया, परंतु अज्ञानीको नानात्व भासता है, ज्ञानवान्को एक सत्ता भासती है, अथवा हुई है, जै भासती है, वैसेवर्ष व्यापी हडपा