पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१५२

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यथार्थोपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१०३३ ), वास्तव नहीं, तैसे आत्माविषे दृश्य वास्तव नहीं जैसे स्वप्न पतन असतही सत् हो भासता है, तैसे जीवको देह अपर भासता है ॥ है। रामजी । आत्मसत्ता ज्योंकी त्यों है, परंतु ऊरणेकार अनेकरूप धारती है जैसे एक ना अनेक स्वांग धरता है, तैसे आत्मसत्ता देहादिक अनेक आकारको धारती है, जैसे स्वप्नविषे एकही अनेकरूपधारी चेष्टा करता है, तैसे जगविषे नानारूपको धारता है । हे रामजी ! आत्मा नित्य शुद्ध सर्वका अपना आप है, अपने स्वरूपके प्रमादकर आप- कार आपका जन्ममरण जानता है, सो जन्ममरण असत्रूप है, जैसे को पुरुष आपको स्वप्नविषे श्वानरूप देखें, तैसे यह आपको जन्मता मरता देखता है, जैसे जैसे इसको पूर्व भावना है, भ्रमकारकै असतको सत् जानता है, जैसे स्वप्नविषे वस्तुको अवस्तु, अरु अवस्तुको वस्तु देखता है, तैसे जाग्रतविषे विपर्यय देखता है, जैसे जाग्रके ज्ञानते स्वप्न- भ्रम निवृत्त हो जाता है, तैसे आत्मा अधिष्ठानके ज्ञानते जगद्धम निवृत्त हो जाता है, जैसे पूर्वका दुष्कृत कर्म किया होवे, अरुतिसके पाछे सुकृत कर्म करै, तब वह आच्छादित हो जाता है, तैसे पूर्व संस्कार जब नीच वासना होती है, अरु पाछे आत्मतत्त्वका अभ्यास करै, तब पुरुष प्रयत्न कारकै मलिन वासना नष्ट हो जाती है, जबलग वासना मलिन होती है, तबलग उपजता विनशता गोता खाता है, जब संतके संग अरु सच्छाखहूके विचारकार अत्मज्ञान उपजता है, तब संसारबंधनते छूटता है, अन्यथा नहीं छूटता ॥ हे गमजी! चित्त वामनारूपी कलंककार जीव आवरा है, देहरूपी मंदिरविषे बैठकर अनेक भ्रमको देखता है भ्रम- आदिक जीवो फुरा है, सो अपने स्वरूपको त्यागिकार अनात्मभ्रमको । देखता भया है जैसे बालक परछाईंविषे भून कल्यै, तैसे कल्पिकार जैसी भावना करि, तेसा भासने लगा, आदि जीवपुर्यष्टकाविषे स्थित हुआ है, पुर्यष्टका कहिये बुद्धि मन अहंकार अरु तन्मात्रा इनका नाम पुर्यएका है, अरु अंतवाहक देह है, चैतन्य आत्मा अमूर्त है, आकाश भी तिसके निकट स्थूल है, प्राण वायु गुच्छेके समान है, देह सुमे- रुके समान है ऐसा सूक्ष्म जीव हैं, सुषुप्त जडरूप अरु स्वभ्रम् .