पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१८३

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(१०६४ ) योगवासिष्ठ । झीवटके स्थानमें आये. देखा कि, झीवट शबकी-नाई पड़ा है, अरु मदिराके बासन पड़े हैं, अरु चेतना वहाँही पड़ी भ्रमती है, नानाप्रकारके स्थानोंको देखती है, जैसे झरणेके छिद्रविषे ..कीडी भ्रमती है, तब झीवटको चित्तशक्तिकारि, जगाया, वह उठ खड़ा हुआ, तिसको ऐसे स्मरण हुआ कि, मुझको तौ इनने जगाया, तब झीवटके मनविषे विचार हुआ कि, इनते शरीर मेरे और हैं, तब रुद्र संन्यासी अरु झीवट तीनों चले, बहुर-इनने विचार किया कि, हम एते शरीर क्योंकर पाये, जो आदि एक परमात्माविषे चैत्योन्मुखत्व कारकै मैं संन्यासी भया, बहार संन्यासीते झीवट हुआ; मद्यपान करने लगा, बहुरि ब्राह्मण हुआ, तहां वेदका पाठ करने लगा, तिस वेदके पाठ करनेके पुण्यकार राजाका शरीर धारा, तिसके आगे जो बड़ा पुण्य प्राप्त भया, चक्रवर्ती राजा हुआ, जब चक्रवर्ती राजाके शरीरविषे काम बहुत हुआ, तिसके होने- कार देवताकी स्त्री भया, तब स्त्री शरीरमैं बहुत प्रीति नेत्रोंविषे थी, तिसते हरिणी भया, बहुरि भंवरी भया, तिसते आगे वल्ली भया, इसते लेकर जो शरीर धारे, सो मैंने मिथ्या धारे हैं, अरु अज्ञानकारकै मैं बहुत काल भटकता रहा हौं, अनेक वर्ष अरु सहस्रही युग व्यतीत हो गये हैं, संन्यासीते आदि रुद्रपर्यंत वासनाकरिकै जन्म पाये हैं, एते जन्म पायकार भी ब्रह्माका हंस जाय हुआ, तहाँ ज्ञानकी प्राप्ति भई, • काहेते-जो पूर्ण अभ्यास किया था, तिसकार अकस्मात्ते सत्संग आनि • प्राप्त भया, ऐसे विचार करते- वहाते चले, तब चेतन आकाशविषे उड़े ब्राह्मण वेदपाठ करनेवालेकी सृष्टिविषे गये तब उसको देखा कि, सोया पड़ा है, चित्तशक्तिकारकै उसको जगाया, तब रुद्र संन्यासी झीवट मद्यपान करनेवाला, अरु ब्राह्मण चारो, वहाते चले, चित्ताकाशविषे उड़े राजाकी सृष्टिविषे गये, तब देखत भये कि, राजाकी सृष्टि चेष्टा करती है, अरु राजा अपने मंदिरविषे शय्यापर सोया है, अरु रानी भी साथ सोई है, सो राजाका देह स्वर्णकी नाईं शोभायमान है, तैसाही रानीका देह है, दोनों सोए पड़े हैं, तिसपर सहेलियां चमर करती हैं। तब राजाको चित्तशक्तिकार जगाया, तब राजा देखत भया कि, सर्व