पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१९०

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बलैकप्रतिपादनवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१०७१) यह अवस्था प्राप्त होती है, जैसे चंद्रमा अमृतकारिकै पूर्ण है, तिसविर्षे चर्मदृष्टि कारकै कलंकता भासती है, तैसे आत्मा अमृतरूपी चन्द्रमाविषे अज्ञानदृष्टिकरिके जन्म मरण शोकदुःख भय कलंक देखता है, महाआश्चर्य माया है, जैसे चंद्रमा एक हैं, नेत्रदो- षकारकै बहुत भासते हैं, तैसे एक अद्वैत आत्माविषे विश्व नानात्वअज्ञा- नकार भान होता है, यही माया है । हे रामजी ! तू एकरूप आत्मा है, तिसविषे फुरणेते विश्व कपी है, ताते फुरणेतेरहित होउ, ऊरणेते रहित हुए विना आत्माका दर्शन नहीं होता, जैसे सूर्य उदय हुये भी बालके होते शुद्ध नहीं भासता, तैसे फुरणरूपी बादलते दूर हुए आत्मरूपी सूर्य शुद्ध भासता है, अरु दृश्य दर्शन दृष्टा फुरणेते कल्पे हैं । हे रामजी । इस संसारका सार जो आत्मा है, तिसविषे सुषुप्तिकी नाई मौन होउ । राम उवाच ।। हे भगवन् ! तीन मौन मैं जानता हौं, सो कौन हैं, एक वाणीमौन, चुपकार रहना; अरु एक इंद्रियकी मौन, अरु एक कष्टमौन कष्टमौन, कहिये जो हठकारकै मनइंद्रियोंको वश करना, यह तीनों मौन मैं जानता हौं, अरु सुषुप्तमौन तुम कहौ कि, क्या है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! तीन मौन कष्ट तपस्वीके हैं, अरु सुषुप्तमौन ज्ञानी जीवन्मु- क्तका हैं, अरु तीनों मौन अज्ञानी तपस्वीके बहुरि श्रवणकर, एक मौन वाणीका जो बोलना नहीं अरु एक मौन समाधि जो नेत्रोंको मूदि लेना, • देखना कछु नहीं, एक हठकार स्थित होना, इंद्रियां अरु मनको स्थिर करना, अरु एक मौन इंद्रियोंकी चेष्टाते रहित होना, यह तीनों मौन कष्ट तपस्वीकी हैं, अरु सुषुप्तमौन ज्ञानीकी सुन, सुषुप्तमौन कहिये जो वाणी- कारकै अरु इंद्रियोंकारिकै चेष्टा भी होवे, अरु आत्माते इतर अपर न भासै, यह उत्तम मौन है, अथवा ऐसे होवै कि, न मैं हौं, न जगत हैं, ऐसे निश्चयविषे स्थित होना, यह महाउत्तम मौन है, अथवा ऐसे होवै कि, सर्व मैंही हौं, ऐसे निश्चयविषे स्थित होना, यह बड़ी उत्तम मौन है ॥ हे। रामजी ! विधिकारकै भी आत्माकी सिद्धि होती हैं, अरु निषेधकारिकै भी आत्माकी सिद्धि होती हैं, तिस आत्माविषे स्थित होना यह बड़ीमौन है ॥ हे रामजी ! यह जो मैं सुषुप्त मौन कही है, सो क्या है, तू सुन,