पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १०९८) • योगवासिष्ठ ।, वृत्ति तद्वत होती है, अर्थ यह एकत्वभावको प्राप्त होती है, तब लक्ष योज- नपर्यंत जो पदार्थ होवें तिनका ज्ञान हो आता है प्रत्यक्ष दृष्टु पडे आते हैं, तिस अग्निका हृद्यरूपी तालस्थान है, जैसे बडवाग्नि समुद्रविचे रहता है, अरु जलही ताके ईंधन हैं, जो जलको दग्ध करता है, तैसे हृदयरूपी तालविषे तिसका निवास है, अरु इस शीतलता जलरूपको पचावत, तिस हृदयकमलते जो अपानरूप शीतल वायु उदय होता है, तिसका नाम चंद्रमा है, अझ प्राणरूप उष्ण पवन उदय होता है, सो सूर्यरूप है, सोई उष्ण अरु शीतल सूर्य चंद्रमा नामकर हमें स्थित हैं, आदिग्रा- णवायु सूर्यते अपनारूप चंद्रमाते सूर्यरूप होकार स्थित होता है, सूर्य उष्ण अरु चंद्रमा शीतल है, इन दोनोंकार जगत् हुआहै, विद्या अविद्या सत्य असत्यरूप जगत दोनोंकारि युक्तहे, सचिव प्रकाश विद्या उत्तरा- यण सूर्य अग्नि आदिकनामसों बुद्धिमान निर्मलभाव कहते हैं, अरु असत् जड अविद्या तम दक्षिणायन आदिङ मार्ग यह चंद्रमारूप मलिन भाव कहते हैं ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! अग्नि सूर्यरूप जो प्राणवायु है, तिसते शीतल जलरूप चंद्रमा अपानरूप कैसे उत्पन्न होता है, अरु अपानजल चंद्रमा रूपते सूर्य कैसे उत्पन्न होता है । वसिष्ठ उवाच ॥ है। रामजी ! सूर्य चंद्रमा जो हैं,अग्नि सोम सो परस्पर कार्यकारणरूप हैं, जैसे बीजते अंकुर अरु अंकुरते वृक्ष अरु वृक्षते बीज होता है, जैसे दिनसों रात्रि अरु रात्रिसों दिन होताहै, छायासों धूप अरु धूपसों छाया होती है, तैसे सूर्य चंद्रमा परस्पर कार्यकारण होते हैं, कबहूँ इनकी इकट्ठी भी उपलब्धि होती है, जैसे सूर्य के उदय हुए धूप अरु छाया दोनों इकडे आते हैं, अरु कार्यकारण भी दो प्रकारका है, एक कार्य सत्यरूप परि- जाम कारकै होता है, एक विनाशरूप परिणाम कारकै होता है, एकते जो दूसरा होता हैं, जैसे बीज नष्ट होगया तिसते अंकुर होता है सो विनाशरूप परिणाम होता है, अरु जैसे मृत्तिकाते घट उपजता हैं, सो सत्यरूप परिणाम कहाताहै, जो कारणकार्यके भावाभावविषे भी इंद्रियों प्रत्यक्ष पाइये, तिसकारास सत्यरूप परिणाम है, अरु जो कार्यविषे इंद्रियोंकार प्रत्यक्ष नहीं पाया जाता; दिनविषे रात्रि अरु रात्रिविषे दिन ।