पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२१८

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अग्निसोमविचारवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१०९९)

  • की नाईं सो विनाशरूप परिणाम कहता है, जैसे प्रत्यक्ष प्रमाण है,

तैसे अभाव भी प्रमाण है, ताते एक विनाशभाव भी कारणरूप है, जो कहते हैं, अपना संवितविषे कर्तव्य नहीं बनता, इत्यादिक युक्तिवादी कहते हैं, सो इस अर्थकी अवज्ञा करते हैं, अपने अनुभवकने नहीं जान- ते हैं, अनुभवकी युक्ति उनको नहीं आती, यह अभाव प्रमाण भी प्रत्यक्ष प्रगट होता है, अरु शीतलता प्रमाण है, जैसे अग्निके अभावते शीतल- ताके अभावविषे उष्णता पाईजाती है, दिनके अभावविषेरात्रि, छायाके अभावविषे धूप, इत्यादिकका नाम अभाव प्रमाण कारण है, अरु अग्नि- ते धूमभाग निकसता है, सो मेघ जाय होता है, इसप्रकार सत्त्वरूप प्रमाणकार सोम जो है चंद्रमा, तिसका कारण अग्नि होता है, अरु अग्नि नाश होकार शीतलभावको प्राप्त होता है, तब इसका नाम विनाश प्रमाणकार अग्नि सोम चंद्रमाका कारण होता हैं, सप्त समुद्रोंका जल- पान कारकै वडवाग्नि धूमको उद्गीर्ण करता है, सो धूम मेघको प्राप्त हो- कार अत्यर्थ जलका कारण होता है, अरु सूर्य जो सो विनाशके अर्थ चंद्रमाको पान करता है, अमावास्यापर्यंत वारंवार भक्षण करता है, बहुरि शुक्लपक्षविषे उद्गीर्ण रूप हैं, जैसे सारस पक्षी भेकको भक्षण कारिकै उद्गीर्ण कर डारता है, ॥ हे रामजी ! अमृतके समान शीतल जो अपानवायु चंद्रमारूप है, सो सुखके अग्नि विषे रहता है, वह जलकणका रूप जब शरीरविषे जाता है, तब वह जलका अणु अपानरूप सूर्यरूप प्राणी फुरणेको प्राप्त होता है, इसप्रकार सत्यरूप परिणामसों जल अग्निका कणका होता है, अरु जब जलका नाश हो जाता है, तब वह उष्णभाव अग्निको प्राप्त होता हैं, इनका नाम वि- नाशपरिणाम है, इसप्रकार जल अग्निका कारण कहता है, अश्केि नाश हुए चंद्रमा उत्पन्न होता है, इनका नाम विनाशपरिणाम है, अरु चंद्रमाके अभाव हुए अग्निका होना होता है, इसका नाम भी विनाशपरिणाम हैं, जैसे तमके अभावते प्रकाश उदय होता है, अरु प्रकाशके अभावते तम होता है, दिनके अभावते रात्रि, अरु रात्रिके अभावते दिन होता है, इसके मध्यविषे जो विलक्षणरूप है,