पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चिन्तामणिवृत्तान्तवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६. ( ११०९ ) देखते आये हैं, अरु तीर्थ करते आये हैं, परंतु जैसी भावना तेरेविषे देखी हैं, तैसी किसीविषे नहीं देखी ॥ हे राजन् तुमने बड़ा तप किया है, अरु तू इंद्रियजित दृष्टि आता है अरु मैं जानता हौं कि, तेरा तप खड़की धारा जैसा तीक्ष्ण है, ताते तू धन्य है, तेरे ताई नमस्कार है। परंतु हे राजन् । आत्मयोगके निमित्त भी कछु तप किया है, अथवा नहीं किया, सो कहु ॥ तबराजाने जो फूलको माला देवपूजनके निमित्त रक्खी थी सो देवपुत्रके गले में डाली अरु पूजा करी बहुरि कहा ॥ हे देवपुत्र! तुमसारिखेका दर्शन दुर्लभहै, अरु अतिथिका पूजन देवताते भी अधि- कहै॥हे देवपुत्र! तेरे अंग बहुत सुंदर दृष्ट आते हैं, ऐसेही मेरी स्त्रीके अंग थे, नखशिखपर्यंत तेरे वही अंग दृष्ट आते हैं, परंतु तू तौ तपस्वी है, तेरी मूर्ति शांतिके लिये हुई है, मैं कैसे कहौं कि, वही है ॥ ताते हे। देवपुत्र ! कहो कि, तू किसका पुत्र हैं। अरु यहां किस निमित्त आया है, अरु आगे कहाँजावैगा, यह संशय मेरा निवृत्त करौ, तब देवपुत्रने कहा ॥ हे राजन् ! एक समय नारदमुनि सुमेरु पर्वतकी कंदराविषे आया था, सो महासुंदर कंद्रा है, जहां आश्चर्यके वृक्ष अरु मंजरियां फूलफलसाथ सब पूर्ण हैं, ब्राह्मणोंकी कुटी तहां बनी हुई हैं, तिस स्थानको देखिकार ब्रह्मवेत्ता नारद मुनि समाधि लगाय वैठा, अरु गंगाका प्रवाह चलता है, जहाँ सिद्धोंकी गम है और जीवोंकी गम नहीं तब केतक काल समाधिविधेस्थित रहा, जब समाधिते उतरा, तब भूष णका शब्द हुआ, तब नारदजीके मनविषे महाआश्चर्य हुआ कि, इहांत आनेकी गम किसीकी नहीं, यह भूषणोंका शब्द कहते आया; तब उठि कार देखने लगा कि, गंगाका प्रवाह चला आता है, तहां उर्वशी आदिक अप्सरा स्नान करती हैं, वस्त्रोंको उतारे हुए महासुंदर हैं, जब उनको देखा तब नारदजीका विवेक आवरण भया; अरु वीर्य चला, तिसके पास सुंदर वल्ली थी तिसके पत्रपर जाय स्थित भया, चंद्रमाकी नाई उज्वल इसप्रकार सुनकारि शिखरध्वजे कहत भया ।। हे देवपुत्र । ऐसा ब्रह्मवेत्ता नारदमुनि सर्वज्ञ अरु बडामननशील तिसका वीर्य किसनिमित्तचला, तब देवपुत्रने कहा ॥ हे राजन! जबलग शरीर हैं, तबलग अज्ञानीका अरु