पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२४१

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(१२२ ) यौगवासिष्ठं । फल टासे जो मेरै थे तिनका मैंने त्याग किया क्यों अब तौ सर्व त्याग हुआ १ तब देवपुत्रने कहा ॥ हे राजन् ! अब भी सर्व त्याग नहीं भया, जो वन अरु वृक्ष फूल फल तुझते आगे भी थे, इनविषे तेरा क्या है, जो तेरा है, तिसको त्याग, तब सुखी होवै ॥ हे रामजी ! जब इसप्रकार देवपुत्रने कहा, तब राजा मनविषे विचारत भया कि, मेरी जलपानकी बावली है, अरु मेरे बगीचे हैं, इनका त्याग करीं, जो सर्व त्याग 'सिद्ध होवै, अरु कहा हे भगवन् ! मेरी यह बावली अरु बगीचे हैं, तिनका त्याग किया क्यों अब तो मेरा सर्व त्याग सिद्ध हुआ, तब देवपुत्रने कहा ॥ हे राजन् । सर्व त्याग अब भी नहीं भया, जो तेरा है, तिसको त्यागैगा, तब शांत पदको प्राप्त होवैगा ॥ हे रामजी । जब इस प्रकार देवपुत्रने कहा, तब राजा विचारने लगा कि, अब मेरी मृगछाला अरु कुटी है, तिसका त्याग करौं, अरु कहा । हे देवपुत्र ! मेरे पास एक मृगछाला अरु एक कुटी है, तिसका त्याग किया, क्यों अब सर्व त्यागी भया । तब देवपुत्रने कहा ॥ हेराजन् । मृगछालाविषे तेरा क्या है, यह तौ मृगकी त्वचा है, अरु कुटीविषे तेरा क्या है, कुटी तौ माटी अरु शिलाकी है, इसकार तो सर्व त्याग सिद्ध नहीं होता, जो कछु तेरा है, तिसको त्यागै तब सर्व त्याग होवे, अरु तू सर्वे दुःखते रहित होवे ॥ हे रामजी ! जब ऐसे कुंभने कहा तब राजाने मनविषे विचार किया कि, अब मेरा एक कमंडलु है, अरु एक माला हैं, एक लाठी है, इसका त्याग करौं, ऐसे विचार कर राजा शांतिके लिये बोलत भया॥ हे। देवपुत्र 1 मेरी लाठी अरु कमंडलु अरु एक माला तिसका भी त्याग किया, क्यों अब मैं सबत्यागी भया ? तब देवपुत्रने कहा ॥ हे राजन् । कमंडलुविषे तेरा क्या हैं, कमंडलु तौ वनका तुंबा है, तिसविषे तेरा कछु नहीं, अरु लाठी भी वनके बाँसकी है, अरु माला भी काष्ठकी है, तिनविषे तेरा क्या है, जो कछु तेरा है, तिसका त्याग कर, जब तिसका त्याग करेगा तब दुःखते रहित होवैगा ॥ हे रामजी -! जब इसप्रकार कुंभने कहा तब राजा शिखरध्वज मनविषे विचारत भया कि, अब मेरा क्या रहता है, तब देखा कि, एक आसन रहता है, अरु बासन हैं, जिस