पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२७५

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१ ११७६ ) योगवासिष्ठ । तब राणकै मनविषेष विचार हुआ कि, यह मेरा भर्ती है, मैं इसको भौगों, हमारी अवस्था है, जो भले कुलकी स्त्री हैं, सो भत्ताको प्रसन्न रखती हैं, अरु राजाका शरीर भी देवता जैसा हुआ है अरू स्थान भी शुभ है, जबलग शरीर है, तबल शरीरके स्वभाव भी साथ हैं, अरु बहुरि विचार किया कि, राजाकी परीक्षा भी करौं कि, क्या कहेगा तब कुंभने कहा, हे राजन् ! अब म स्वर्गको जाते हैं, जो चैत्र शुद्ध एकमको ब्रह्माजीने सृष्टि उत्पन्न करी है, इसी दिन वर्षके वर्ष उत्सव होता है, अरु लारदुशुनि भी आवैगा, ताते हम जाते हैं, अरु आजही फिर आवेंगे, मेरे आनेपर्यंत तुस ध्यानविषे रहना, अरु ध्यानते उतरौ तब फूलको देखना, ऐसे कहिार फूलोंकी मंजरी राजाको दीनी, अरू जाने भी कुंभको फूलकी मंज़री दीनी, जैसे नंदनवनविषे स्त्री कार्ताके हाथ देवै अरु भत्त स्त्रीके हाथ देवै तैसे दोनों परस्पर देते भए, बहुरि कुंभ आकाशको उडा, अरु पाछे राजा देखता रहा, जैसे मेचको मोर देखता है, तैसे राजा देखता रहा, जेतेपर्यंत राजाकी दृष्टि पडती थी, तबलग कुंभका शरीर रक्खा, जब दृष्टिसों आकाशवर्षे अगोचर भया, तब फूलकी माला जो गलेविषे थी, सो तोड्रिकार राजाके ऊपर डारि दीनी अरु चुडालाका शरीर धारि आकाशको लंचिकर अपना अंतःहुए जो था स्वीका स्थान, तहाँ आय प्राप्त भई, अरु राजाके स्थानपर बैठकर मंत्रीको बुलाया, अपने अपने स्थानों विषे स्थित किये, अरु जाकी खबर लीनी, बहुरि उड़ी सूर्यके किरणों के मार्ग मेघमंडलको लांचती आई, जहाँ राजाका स्थान था तहाँ आयकार देखा कि, राजा बिछुरेकार शोकवान् है, अरु कुंभ भी दिलगीर जैसा राजाके आगे आय स्थित भया, तब राजाने कहा ॥ हे भगवन् ! शोक तुम्हारे ताईं कैसे प्राप्त भया है, ऐसा कष्ट मार्गविक्षे तुम्हारे ताई कौन हुआ है, अरु सर्व दुःखका नष्ट करनेझारा ज्ञान है, जो तुमसारखे ज्ञानवान्को शोक होने तौ अपरकी क्या बात कही है। हे मुनी ! तुम्हारे ताई दुःखका कारण कोऊ नहीं, तुम क्यों शोकवा होते हौ, अरु तुम्हारे ताईं झवन अनि प्राप्त भया है, तब कुंभने कहा ।। हे राजन् ! मेरे ताई एक कुख