पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२७७

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(११५८) योगवासिष्ठ । क्या दुःख है, जो शरीरका प्रारब्ध है, सो होता है, तिससाथ हमारा क्या प्रयोजन है, यह ईश्वरकी नीति है, जबलग शरीर होता है, तबलग शरीरके स्वभाव भी रहते हैं, अरु शरीरका स्वभाव त्याग करना भी शूर्खता है, जिस स्थानविषे ज्ञानकी प्राप्ति होवै तिसी चेष्टाविषे विचरिये, अरू यह भी मूर्खता है, कि इंद्रियोंको रोकना, अरु मनकार विषयकी चितना करनी, ताते इंद्रियां अरु देहकी चेष्टा ज्ञानवान् भी करते हैं, परंतु तिसविषे बंधमान नहीं होते, इंद्रियां विषयविषे वर्तती हैं, आदि नीति ईश्वरकी इसी प्रकार हैं । हे राजन् ! नीतिका त्याग किसीते। किया नहीं जाता, ताते नीतिका त्याग क्यों कारये ? यह नीति है कि, जबलग शरीर है, तबलग शरीरके स्वभाव भी होते हैं, जैसे जबलग तिल है, तबलग तेल भी होता है, तैसे जबलग शरीर है, तबलग शरीरके स्वभाव भी होते हैं, जो ज्ञानवान् पुरुष हैं, सो देह इंद्रियोंकार चेष्टा भी करते हैं, परंतु बंधायमान नहीं होते, हैं, अरु अज्ञानी बंधायमान होते हैं, अरु चेष्टा ज्ञानी करते हैं, अज्ञानी भी करते जैसे ब्रह्मा विष्णु रुद्रत आदि लेकार ज्ञानवान हैं, सर्व चेष्टा भी करते हैं, परंतु बंधायमान किसीकर नहीं होते हैं राजन् ! तैसे जो अनिच्छित आय प्राप्त होवै, अरु जिसको शास्त्र प्रमाण करे, तिसके भोगणेविषे दूषण कछु नहीं । राजोवाच ॥ हे भगवन् ! ज्ञानवान्को दूषण कछु नहीं, जो सत्ता समानविषे स्थित है, तिस कारकै दूपण कछु नहीं होता, अरु अज्ञानी शरीरके दुःख अपने विषे देखता है, तिसकरि दुःखी होता हैं, अरु ज्ञानवान शरीरके दुःख अपनेविषे नहीं देखता ॥ हे रामजी ! ऐसे कहते सुर्य अस्त हुआ, तब राजा अरु कुम्भ दोनोंने सायंकालविषे संध्या करी, अरु जाप किया, जब रात्रि हुई तब तारागण निकसे. अरु सूर्यमुखी कमलोंके मुख मुदगए, तब कुम्भने कहा ॥ हे राजन् ! देख कि, मेरे शिरके बाल बढते जाते हैं, अरु वस्त्र भी गिटेपर्यंत हो गये हैं, अरु स्तन भी स्त्रीकी नाई भए हैं, इत्यादिक वस्त्र भूषण जेती कछु चेष्टा है, सो स्त्रीकी हुई, तब राजाको भी शोक प्राप्त भया, अझ महासुंदर स्त्री लक्ष्मीकी नई चुडाला होगई, तिसको देखिकार राजाको एक मुहूर्त शोक रहा, तिसते उपरांत साव