पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२७९

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( १३६० ) योगवासिष्ठ । भाय जानिकार जो कछु स्त्री छुरुष चेष्टा करते हैं, सो किया कर, मेरी अवस्था भी यौवन है, अह हैं ? सुंदर है, इालवान् अनिच्छित प्राप्त हुएका त्याग नहीं करते; यद्यपि तुझको इच्छा से होवै, तो भी ईश्वरकी नीति इसी प्रकार है, तिसको उल्लंघलेकर क्या सिद्ध होता है, जो अपने स्वरूप सञ्चाविचे स्थित है, तिसको ग्रहण त्यागकी कृछु इच्छा नहीं परंतु जो नीति है, सो करी चाहिये । राजोवाच॥ हे साधौ ! जो तेरी इच्छा है, करिये, तुझं तौ तीनों जड शाशरूष भासते हैं, होलेकरि मेरे ताई सुख कछु नहीं, अशशिवि दुःख नहीं, को मेरे हर्प है। न शोक है जो तेरी इच्छा होय खो झरिये ॥ उवाच ।। हे राजन् ! आजही पूर्णमासीला भला दिन है, अरू यह मैंने आगे लश्च भी गिनि छोड़ा है, ताते चल पर्वती केंद्राविऐ बैठिकरि विवाह कारये, अब सामग्री इकट्ठी करिये, तब राजा अरु कुंभ दोनों उठे, जो कछु सामग्री शाखकी है, इकट्ठी ,अरु दोनों गाएर लान किया अरू बेहली पूजन झरि अझ बवा फूल फल आहिलेझार को विवाहकी सासकी है, सो कल्पवृक्षसों लीनी, बहुरि फल भोजव किया, तब सूर्य अस्त भया,दोनोंने संध्या उपासना करी, बहुरि राजाको दिव्य वस्त्र भूषण पहिराए, अरु शिरपर सुकुट पहिराया, बार कुंभका शरीर त्याग किया, अरु स्वीका शरीर होत भा, तब स्वीने कहा ॥ हे राजन् ! अब तू मेरे तांई भुषण पहिराय, तब राजाने संपूर्ण ऋण फूल अरु वस्त्र पहिराए; अरु पार्वतीकी लाई दूर बनाई, तब चूडालाले कहा ॥ हे राजन् ! मैं अब तेरी स्त्री हौं, अझनाम शेरा मदनिका है, अरु ठू मैरा अन्त हैं, कामदेवते भी तू सुंदर सता है । वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी । इसी प्रकार चुडालाले बहुत झा, तौ भी जाका चित्त हर्षको न प्राप्त भया, अरु वैराग्यकार शोकवान भी न या, ज्या त्यों रहा, तिसते उपरांत विवाहका आरंभ किया, चंदौआ आदि अरु वत्व कल्पवृक्षते लिये, अरु पास के कलश रखे, देवता पूजन किया, इत्यादिक जो शास्त्रकी विधि थी सो सेवा करलालिया अरु मंगल किया. बार संकल्प यह दिया जो संपूर्ण ज्ञानन्छि, तेरे तांई दीनी अरु जाने