पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२८५

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( ११६६) यौगवासिष्ठ । खडे हो आए, अरु नेत्रते जंले चुलने लगा, ऐसी अवस्थासाथ राजा बोला ॥ है देवि ! मेरे ऊपर तैने बडा अनुग्रह किया है, तेरी स्तुति करनेको मैं समर्थ नहीं, कैसे स्तुति करौं, जेते कछु संसारके पदार्थ हैं। सो सब मायामय हैं, अरु मिथ्या हैं, अरु नैंने मेरे तांई सत्पदको प्राप्त किया है, ताते मैं, तेरी उपमा क्या करौं । हे देवि । मैंने जाना है, जो जब मैं राज्यका त्याग किया है, अरु इस चूडालाके शरीपर्यंत सब तेरे चरित्र हैं, अरु मेरे वास्ते बडे कृष्ट तैने सहन किये हैं, अरु बडे यत्न किये हैं, आना अरु जाना, शरीरका स्वांग धारना, अरु उड़ना इत्यादिक बडा लैंने कष्ट पाया है, अरु बडे यत्नकर मेरे ताई संसारसमुद्भुते पार किया है, अरु बड़ा उपकार किया है, तू धन्य है, अरु जेती कछु देवियां हैं, तिनसों तैने श्रेष्ठ कार्य किया है, ताते तू सबते अधिक है सो कौन देवियां हैं, जिनते तु अधिक, अरुंधती अरु ब्रह्माणी अरु इंद्राणी अरु पार्वती, सरस्वती, इत्यादिक देवियोंको तैने तिरस्कार किया है। हे देवि ! जो श्रेष्ठ कुलकी कन्या है, अरु पतिव्रता है, सो जिस घुरुघको प्राप्त होती हैं, तिसका सर्व कार्य सिद्ध होता है, सो कौन कौन श्रेष्ठ स्त्रियां हैं, श्रवण कर, बुद्धि अरु शांति अरु दया अरु शक्ति, अरु । कोमलता, मैत्री इत्यादिक जो शुभ लक्षण हैं, सो पतिव्रता स्वीकार प्राप्त होते हैं । हे देवि ! मैं तेरे प्रसादकारि शांतिपदको प्राप्त भया हौं, अब मेरे ताईं क्षोभ कोऊ नहीं, ऐसा पद शास्त्रोंकार भी नहीं पाता, अरु तपकर नहीं पाता, जो पतिव्रता स्वीकार पाता है । चूडालोवाच ॥ हे राजन! तू काहेको मेरी स्तुति करताहैं, मैं तो अपना कार्य कियाहै ॥ हे राजन्! जब तू राज्यका त्याग कार वनविषे आया, तब तू मोहको साथही लिये आया, मोह कहिये अज्ञान तिस अज्ञानकारि नीचस्थानविषे पड़ा, जैसे कोऊ गंगाजलको त्यागकरि चीकडके जलका अंगीकार करे तैसे तैने आत्मज्ञान अक्रिय पदका त्यागकारि तपका अगीकार किया ॥ हे राजन् ! मैंने देखा कि तू चीकडूविषे गिरा है, ताते मैं तेरे निकासनेनिमित्त एते यत्न किये हैं। हे राजन् ! मैं अपना कार्य कियाहै ॥ राजोवाच ॥ हे देवि ! मेरा यही आशीर्वाद है, कि, जो कोऊ पतिव्रता स्त्री होवै, सो सब ऐसेही