पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२८६

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चूडालाप्राकट्यवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. ( ११६७) - कार्य करै, जैसे तुमने किया है, जो पतिव्रता स्त्रीते कार्य होता है, सो अपरते नहीं होता । हे देवि ! जेती अरुंधतीते आदि पतिव्रता स्त्रियां हैं, तिनते तू प्रथम गिनीजायगी, अह मैं जानता हौं, ब्रह्माजीने तेरे ताई क्रोधकार इसनिमित्त उपजाई हैं, कि अरुंधतीते आदि जौ देवियां हैं, तिन्होंने आपसविषं गर्व किया होवैगा, तिस गर्वको सुनिकरि तिनके - गर्व निवारणेनिमित्त तुझको अधिक उत्पन्न किया है, ताते हे देवि! तु धन्य है, जो लैंने मेरे ऊपर बड़ा उपकार किया है । हे देवि ! तू बहुारे मेरे अंग लाग जो तेंने बड़ा उपकार मेरे साथ किया है । हे। रामजी ! ऐसे कहकर राजाने राणीको बहुरि गले लगाई, जैसे नोल अरु नोली मिलें, अरु मूर्तिकी नाई लिखी है, ऐसे भासें ॥ चूडालोवाच ॥ हे भगवन् ! एक तौ मेरे तांई यह कहु, जो ज्ञानरूप आत्माके एक अंशविषे जगत् लीन हो जाता है, ऐसा जो तू है, सो आपको अब क्या जानता है, अरु अब तू कहाँ स्थित है, अरु राज्य तेरे ताई केछु दिखाई देता है, अथवा नहीं देता ? अब तेरे ताई क्या इच्छा है । शिखरध्वज उवाच ॥ हे देवी! जो स्वरूप तैंने ज्ञानकारकै निश्चय कियाहैं, सोई मैं आपको जानता हौं, अरु शतरूप हौं, इच्छा अनिच्छा मेरे ताई कोई नहीं रही, केवल शांत रूप हौं। हे देवी! जिसपदकी अपेक्षाकरिकै • ब्रह्मा विष्णु रुद्रकी मूर्तियाँ भी शोकसंयुक्त भासती हैं तिस पदको मैं प्राप्त भया हौं, जहाँ उत्थान कोऊ नहीं, अरु निष्किचित् है, जिसविणे किंचित मात्र भी जगत नहीं अरु मैं जो था सोई भया हौं, इसते इतर क्या कहौं. हे देवि ! तैने संसारसमुद्रते मेरे तांई पार किया है, ताते तू मेरा गुरु है, ऐसे कहिकरि चूडालाके चरणोंपर राजा गिर पड़ा, अरु कहा, अज्ञान मेरे ताई कदाचित् स्पर्श न करेगा, जैसे तांबा पारसके संगकरि स्वर्ण हुआ, बहुरि तांबा नहीं होता, तैसे मैं मोद्दरूपी चीकडते तेरे संगकार निकसा हौं, बहुरि कदाचित् न गिरौंगा, अरु अब इस जगतके सुखदुःखकार न तुष्ट होता हौं, ज्योंका त्यों स्थित हौं, रागद्वेषको उठानेवाला जो चित्त है, सो मेरा नष्ट हो गया है, अब मैं प्रकाशरूप अपने आपविषे स्थित हौं, जैसे जलविषे सूर्यका प्रतिबिंब पड़ता है,