पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२८८

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शिखरध्वजचुडालाख्यानसमाप्तिवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. ( ११६९ ) किया, चूडालाने मनके संकल्प करिकै रत्नोंकी मटकी रची अरु हाथपर धारी तिसविषे गंगा आदिक तीर्थीका जल पाया, अरु राजाको स्नान कराया, शुद्ध किया, अरु संध्यादिक सर्वं कर्म किए, तब चुडालाने कहा है राजन् । मोहको नाश करकै सुखेनही अपने राज्यकार्यको करें, अरु आनंदसाथ भोग भोगें ॥ राजोवाच ॥ हे देवि ! जो सुख भोगनेकी तेरे ताई इच्छा है तौ स्वर्गविषे भी हमारा राज्य है,अरु सिद्धविषेभी हमारा है, ताते स्वर्गहीविषे विचरें ॥ चूडालोवाच ॥ हे राजन् ! हमकोन सुख भोगनेकी इच्छाहै, न त्यागनेकी इच्छा है, हम ज्योंके त्यों हैं ॥ हे राजन् ! इच्छा अनिच्छा तब होतीहैं, जव आगे कछु पदार्थ भासता है, हमको तो केवल आकाश आत्मा दृष्ट आता है, स्वर्ग कहाँ अरु नरक कहां, हम सर्वदा एकरस स्थित हैं ॥ हे राजन् । यद्यपि हमको कछु नहीं, तो भी जबलग शरीरका प्रारब्ध है, तबलग शरीर रहता है, तौ चेष्टा भी हुई चहिए, अपर चेष्टा करनेसे अपने प्रकृत आचारको क्यों न करिये, जो रागद्वेषते रहित होकर अपने राज्यको भोगैं, तोते अब उठ अष्टवसुके तेजको धारिकार राज्य करनेको सावधान हो । हे रामजी ! जब ऐसे चूडालाने कहा, तब राजा कहत भया, ऐसेही होवे, अरु अष्टवसुके तेजसंयुक्त होत भया, जब ऐसा तेज राजाको प्राप्त भयो, तब कहा ॥ हे देवि ! तू मेरी पट्टराणी है, अरु मैं तेरा भर्ता हौं, तो भी एक तू है, एक मैं हौं अपर कोऊ नहीं, अरु राज्य तब होता है, जब सैनाभी होवे ताते तू सैना रच, तब चूडाला संपूर्ण सैनाको रचती भई, हस्ती, घोडे, रथ,. नौबत, नगारे, निशान इत्यादिक जो राज्यकी सामग्री है सो रची है, अरु प्रत्यक्ष आगे आनि स्थित भई. नौबत, नगारे, तुरिया, सहनाई बाजने लगे, जो कछु राज्यकी सामग्री है सो अपने २ स्थानविषे स्थित भई, राजाके शिरऊपर छत्रफिरने लगा, अरु बैरख खडी हुई, तब राजा अरु राणी हस्तीपर आरूढ़ होकर चले, मंदराचल पर्वतके ऊपर आगे पाछे सब सैना भई, अरु राजा जिस जिस ठौर तप करत भया था, सो राणीको दिखावता जावै कि, इस स्थानविषे मैं एता कालरही हौं, इसविधे एता काल रहा हौं, जब राज्यका त्याग किया था, ऐसे दिखाता जावे ७४