पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२९०

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बृहस्पतिबोधवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (११७१ ) तिका पुत्र कच भी बोधवान हुआ है ॥ राम उवाच ।। हे भगवन् । जिस प्रकार बृहस्पतिका पुत्र कच बोधवान् हुआ है, सो प्रकार सबही संक्षेपते मुख्यकार मुझको कहौ ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! ऐसा कच था, जो बालक अवस्था अज्ञात है, तिसको त्यागिकार पदपदार्थको जानने लगे, जब ऐसा हुआ तब पिता बृहस्पतिसों प्रश्न कियाः कि, हे पिता ! इस संसारपिंजरते मैं कैसे निकसों, जेता संसार, सो जीवित कारि बाँधा हुआ है, जीवित कहिये अनात्म देहादिकोंविषे मिथ्या अभिमान करना, इसीकर बांधा हुआ है, जो अहं त्वं मानता है, तिस संसारते मुक्त कैसे होउँ १ ॥ बृहस्पतिरुवाच ॥ है तात । इस अनर्थरूप संसारते तब मुक्त होता है, जब सर्व त्याग करता है, सर्व त्याग कियेविना मुक्ति नहीं होती,ताते तू सर्व त्याग करु, जो मुक्ति होवे। वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! जब इसप्रकार बृहस्पतिने कहा, तब कच ऐसे पावन वचनोंकोश्रवणकार ऐश्वर्यका त्यागकर वनकोगया,वनविषे जाय कार एक केंदामें स्थित भया,तप करने लगा । हे.रामजी 1 बृहस्पतिका • पुत्र कच तिसके जानेकार उसको खेद कछु न भया, जो ज्ञानवान् पुरुषको संयोगवियोगविषे समभाव रहता है, हर्षशोकको कदाचित् नहीं प्राप्त होता ज्योंका त्यों रहता है, जब अष्ट वर्षपर्यंत तप किया, तब बृहस्पति आया, अरु देखा कि, कच एक कंदराविषे बैठाहै, तहाँ कचके पास आनि स्थित भया, अरु कचने पिताका पूजन गुरुकी नई किया, अरु बृहस्पतिने कचको कंठ लेगाया, तब दुःखकार गद्गद वाणीसहित कचने प्रश्न किया. हे पिता । अष्ट वर्ष बीते हैं, जो मैं सर्व त्याग किया है, तो भी गतिको नहीं प्राप्त भया, जिसकरि मेरे ताई शांति प्राप्त होवै, सो कहौ, तब बृहपतिने कहा, हे तात । सर्व त्याग करु जो तेरे ताई शांति होवे, ऐसे कहिकार बृहस्पति उठ खड़ा हुआ; अरु आकाशको चला गया । हे रामजी । जब ऐसे बृहस्पति कहिकार चला गया, तब कच आसन अरु मृगछाला अरु वनको त्यागकर आगे वनको चला, एक कैदराविषे जायकार स्थित भया,तब तीन वर्ष वहाँ व्यतीत भए, बहुरि बृहस्पति आय ‘प्राप्त भया. देखा कि, कच स्थित है, तब कचने भली प्रकार गुरुकी नई