पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३००

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महाकछुपदेश वर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (११८१ ) हे भगवन् देवकेदेव ! यह संसार मिथ्या भ्रमहै, तिसविषे मैं सत्यपदार्थ कोऊ नहीं देखता, सदाचलरूप भासता है. अरु जो सत्पदार्थ, तिसको मैं नहीं जानता मेरे ताप नष्ट नहीं भए, मैं शांतिको नहीं प्राप्त भया, ताते आपको दुःखी देखताहौं, जिसकरि शांति प्राप्त होवे,सो कृपाकार कहौ अरु खेदतेरहित होकर चेष्टाविषे विचरौ,सो खेदते रहिततबहोताहै,जब कोङ आसरा होता, अरुजेताकछु संसारहै सो मिथ्या है, मैं किसका आसरा करौं;तातेसोई मेरेताईं कहौ, जिसको आश्रयकिये दुःखमेरेनष्टहोवें ईश्वर उवाच ॥ हे.भेंगी ! तू महाकर्ता होहु, अरु महाभोक्ता होहु अरु महात्यागी होडु, सर्व शंकाको त्यागिकार निरंतर धैर्यको आश्रय कारकै तेरे दुःख नष्ट होवेंगे. वसिष्ठेउवाच॥ हे रामजी! ऐसा जो है भृगीगण जिसको सदाशिवने पुत्रकाररक्खा है,तिसनेश्रवण करिकै प्रश्न किया॥हे परमेश्वर महाकर्ता क्या कहिये, महाभोक्ता महात्यागी क्या कहिये, सो कृपाकर ज्योंका त्यों मेरे ताई कहौ ॥ ईश्वर उवाच ॥ हे पुत्र । सर्वात्मा जोअनुभवरूप हैं, तिसका आश्रय कारकै विचरु, जो दुःखते रहित होवै, अरु इन तीनों वृत्तिकारै दुःख तेरे नष्ट हो जावेंगे, जो कछु शुभक्रिया आय प्राप्त होवै; तिसको शंका त्यागके करै, ऐसा पुरुष महाकत है, धर्म अधर्मक्रिया अनिच्छित आनि प्राप्त होवै, तिसको रागद्वेषते रहित होकार करे ऐसा पुरुष महाकर्ता है, जो पुरुष मौनी निरहंकार निर्मान है, मत्सरते रहित होकार ऐसा पुरुष महाकर्ता है, अनिच्छित प्राप्त हुएका त्याग न करे, अरु जो नहीं प्राप्त हुआ, तिसकी वॉछा न करें, ऐसा पुरुष महाकर्ता है, अरु पुण्य पाप किया जो अनिच्छित आय प्राप्त होवे, तिसको अहंकारते रहित होकर करै, पुण्यक्रिया करनेते आपको पुण्यवान् नहीं मानता, अरु पाप कियेते पापी नहीं मानता; सदा आपको अकर्ता जानता है ऐसा पुरुष महाकत है, अरु जो सर्वविषे विगतस्नेह है, सत्यवत् स्थित है, निरिच्छा वर्तता है, कार्यविषे सो महाकर्ता है, जो दुःखके प्राप्त हुएते शोक नहीं करता, अरु सुखके प्राप्त हुएते हर्षवान् नहीं होता, स्वाभाविक चित्तसमताको देखताहै, कदाचित् विषमताको प्राप्त नहीं होता, जो सुखकी भिन्न भिन्न विषमता हैं, तिसते.