पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३०२

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कलनानिषेधवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (११८३) ज्ञानवान् शुभअशुभको धारिकरि सम रहता है, जो संसार अरु देह इंद्रियां अरु अहंकारकी सत्ताको त्यागिकार स्थित हुआ है, अरु जानता है, न मैं देह हौं, न मेरा देह है, इनका साक्षी हौं, इस वृत्तिको धार रहे, सो महात्यागी है, अरु जो सर्व चेष्टा करता है, रागद्वेषते रहित होकार सो महात्यागी है, अरु शुभ अशुभ प्राप्त हुएको अहंकारते रहित होकार करता है, सो महात्यागी है, अरु जो मन इंद्रियां देहकरि इच्छाते रहित हुआ सर्व चेष्टा भी करता है, सो महात्यागी है, अरु जो पुरुष समचित्त इंद्रियजित है, अरु जो क्षमावान् है, सो महात्यागी है ॥ हे रामजी । जिसे पुरुषने धर्मअधर्मकी देह संसारकी मद मान मनन इत्यादिक कल्पनाका त्याग किया है, सो महात्यागी है । हेरामजी ! इसप्रकार भुंगीगणको सदाशिवने उपदेश किया, सो कैसा सदाशिव है, खप्परको हाथविषे धारे, अरु व्याघ्रांबरको लिए हुए मस्तकविषे चंद्रमाको धारे तिसने सुमेरुके शिखरपर उपदेश किया ॥ हे रामजी ! तू भी इसी वृत्तिको धारिकार विचरु, तेरे सर्व दुःख नष्ट होजावेंगे।।इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे महाद्युपदेशवर्णनं नाम द्विनवतितमः सर्गः ॥ ९२ ॥ त्रिनवतितमः सर्गः ९३. कलनानिषेधवणनम् । राम उवाच ॥ हे मुनीश्वर ! जो तुमने उपदेश किया सो मैं जाना है, अरु तुमने आगे उपशम प्रकरणविषे उपदेश किया था, कि आत्मा अनंत है, अरु शुद्ध है, तब मैं प्रश्न किया था, जो आत्मा अनंत है अरु शुद्ध हैं, तो यह कलना कैसे उपजी हैं, जैसे समुद्र निर्मल है, तिसविषे धूड कैसे होवै, बहुरि तुमने कहा, इस प्रश्नको उत्तर सिद्धांत कालविषे कहेंगे, सो मैं अब सिद्धांतका पात्र हौं. मेरे ताईं कहौ, जैसे स्त्री भर्तासों प्रश्न करतीहै, अरु भर्ता कृपा कारकै उपदेश करता है, तैसे मैं तुम्हारी शरण हौं, कृपा कारकै मुझको उत्तर कहौ, जो आशा अरु अरु आशारूपी जालते निकसाहौं, अरु संशय