पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३०६

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संतलक्षणमाहात्म्यवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (११८७) बैंगे । हे रामजी 1 जैसे सूर्यके आगे बादल होते हैं, तौ प्रकाश नहीं होता, जब बादल दूर होते हैं, तब प्रकाशवान भासता है; अरु सूर्यके प्रकाशकार कमल प्रफुल्लित होते हैं, तैसे आत्मारूपी सूर्यको अहंकाररूपी बादलका आवरण हुआ; अहंकार कहिये किसी मायाके गुणसाथ मिलिकर कछु आपको मानना, जब अहंकाररूपी बादल नष्ट होवैगा, तब आत्मारूपी सूर्यको प्रकाश होवैगा, अरु ज्ञानवानरूपी कमल तिस प्रकाशको पायकार बड़े आनंदको प्राप्त होते हैं ॥ हे रामजी ! ताते अहंकारकै नाशका उपाय करौ, जो तुम्हारे दुःख नष्ट हो जावें, वह कवन पदार्थ है, जो उपाय किये सिद्ध नहीं होता, जो अहंकारके नाशका उपाय करिये तौ नष्ट हो जाता है, जिसप्रकार अहंकार नष्ट होवे। सो श्रवण करु, सच्छास्त्र जो ब्रह्मविद्या है, तिसका वारंवार अभ्यास कर संतके संग जो कथा परस्पर चर्चा करनी, तिसकार अहंकार नष्ट हो जाता है, जैसे पाणी भरणेकी जेवरीकार पत्थरकी शिलाको चाँसि पड़ जाती है, तैसे ब्रह्मविद्याका अभ्यासकार अहंकार नष्ट होता है, अरु शिलाके घसणेविषे कछु यत्न है, अहंकारके त्यागणेविषे यत्न कछु नहीं ।। हे रामजी ! सदा अनुभवरूप आत्मा है, तिसका विचार करौ कि, मैं कवन हौं, अरु इंद्रियां क्या हैं, गुण क्या हैं, अरु संसार क्या है, जो ऐसे विचारकरि इनका साक्षीभूत हो, कि मेरेविषे अहं त्वं कोऊ नहीं, इसकार अहंकारका नाश करौ, अरु तू शुद्ध है, मेरा भी आशीर्वाद है। जो तू सुखी होवै, जब अहंकार नष्ट होवैगा, तब कलना कोङ त फुरेगी, केवल सुषुप्तिकी नई स्थित होवैगा । राम उवाच ॥ हे भगवन् ! जो अहंकार तुम्हारा नष्ट हुआ है, तो प्रत्यक्ष उपदेश करते कैसे देखते हैं। अरुजो अहंकार नहीं तौ सर्व शास्त्र ब्रह्मविद्या कहाँते उपजे हैं, अरुउपदेश कैसे होता है. उपदेशविषे चारों सिद्ध होते हैं, अंतःकरण जो प्रथम उपदेश करनेकी इच्छा होती है, तब अहंकार सिद्ध होता हैं, अरु जब स्मरण होता हैं, जो उपदेश करौं, तब चित्त भी चैत्यकार सिद्ध होता है, बहुरि यह उपदेश करिये, यह नहीं करिये, ऐसे संकल्प किये मुनकी सिद्धता होती है, बहुरि निश्चय किया यह उपदेश करिये, तब बुद्धिकी