पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३४२

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जी ! पूर्वजा नहीं, वर्तमानपत्यागिकार स्व अगे होनेकी अति भी संकल्प किसी पदार्थ तृणपर्यंत राग हुआ कर्माकर्मविचारवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१२२३ ) • मन हैं, इस मनका त्याग करो, मनही दुःखदायी है, जैसे कुंभारका चक्र फिरता है, तिसते बासन उत्पन्न होते हैं, तैसे मनरूप चक्रते पदार्थरूपी बासन उत्पन्न होते हैं, मनके ऊरणेकार संसार सत्य होता है, जब फुरणा निवृत्त हुआ, तब दुख कोऊ न रहैगा । हे रामजी ! ऊरणे अञ्जरणेविषे समान हौवैगा, तब रागद्वेषते रहित होकार विचरैगा, यह होवै, यह न होवै, इसते रहित होकर चेष्टा कर, अभिलाषपूर्वक संसारविषे न फुरै ॥ हे रामजी ! पूर्व जो ज्ञानवान् हुए हैं, तिनको बीतीकी चितवना नहीं, अरु अगे होनेकी आशा नहीं, वर्तमानकालविषे शास्त्रअनुसार रागद्वेषते रहित चेष्टा करणी, ताते तू भी संकल्पको त्यागिकार स्वरूपविषे स्थित होहु ॥ हे रामजी ! ब्रह्माते आदि तृणपर्यंत किसी पदार्थविषे राग हुआ तौबंधन है, अरु मेरा यही आशीर्वाद है, जो ब्रह्माते आदि तृणपर्यंत करि तेरी रुचि मत होवै, अपने आपहीविषे रुचि होवै ॥ हे रामजी ! यह संसार मिथ्या है, इसविषे पदार्थ कोऊ सत् नहीं, सर्व मनके रचे हुए हैं, ताते मनको स्थिर करौ, जैसे धोबी साबू मिलायके वस्त्रका मैल दूर करता है, तैसे मनकारि मनको स्थिर करौ, जब मनको स्वरूपवित्रे स्थित करेगा, तब मन अपने संकल्पको आपही नाश करैगा, जैसे कोऊ दुष्ट पुरुष धनकार वृद्ध होता है, तब भाई आदिकको नाश करनेका उपाय करता है, तैसे मन जब आत्मपदविषे स्थित होता है, तब अपने संकल्प को नाश करता है, जब मन तेरा स्वरूपविषे स्थित हुआ, तब तू अमन होवैगा, अरु दुःख तेरे सब नष्ट हो जावेंगे, अरु मनके नाशविना सुख कोऊ नहीं ॥ हे रामजी ! यह मन ऐसा दुष्ट हैं कि, जिसते उपजता है, तिसीके नाशनिमित्त होता है, जैसे बाँसते अग्नि उपजता है, बार तिसीको जलाता है, तैसे आत्माते उपजिकारि यह मन आत्माहीको तुच्छ करता है, जैसे राजाका टहलुआ राजाकी सत्ता पायकरि राजाको मारिकार आप राजा होता है, तैसे मन आत्माकी सत्ता पायकारे तिसको आच्छादि आपही कर्त्ता भोक्ता हो बैठा है, ताते मनको मनहीकार नाश कर, जैसे लोहा तपायकरि लोहेको काटता है तैसे मनसाथ मनहीको शुद्ध करु ॥ है रामजी ! वृक्ष वल्ली फूल फल पशु पक्षी देवता यक्ष नाग जेते