पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३४९

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(१२३०)। यौगवासिष्ठ । तैसे कलनाभीआत्मस्वरूप है, इतर कछु नहीं ॥ हे रामजी! यह कलना जौ तुझको भासती है, तिसको त्यागिकार जब अपने आपको देखे, तब संशय सब मिटिजावै, जैसे प्रलयकालकाजल चढ़ता है, तब सर्व जलमय हो जाता हैं, इतर कछु नहीं होता, तैसे अपने स्वरूपको जब तू देखेगा तब तेरे ताई सर्व आत्माही भासैगा, आत्माते इतर कछु दृष्ट न आवैगा ॥ हे रामजी ! आत्मा एकरस है, सम्यक्दर्शनकारि ज्योंका त्यों भासेगा अरु असम्यकूदर्शनकारि अपरका अपर भासैगा, जैसे जेवरी एक होती है, तिसको यथार्थ न देखिये तौ सर्पभ्रम होता है, अरु देखिकर भयमान होता है, जब ज्योंकी त्यों जेवरी जानी तब सर्पभ्रम निवृत्त होता है तैसे आत्माके न जाननेते संसारी होता है, अरु भयमान होता है आपको जन्मता मरता मानता है, सर्व विकार देहके आत्माविषे जानता है, जब आत्माको जानता है, तब सर्व भ्रम निवृत्त हो जाते हैं, जैसे नेत्रकारि तारे देखता हैं, जब नेत्र बँदि लेवै तौभी उनका आकार अंतःकरणविषे भासता है, काहेते कि, तिनकी सत्यता हृदयविषे होती है, अरु जब हृदयते सत्यता उनकी उठि जावै तब बहुरि नहीं भासते तैसे संसार चित्तके भ्रमकार हुआ है, इसको मिथ्या जान ॥ हे रामजी ! फुरणेविषे जो दृढ़ भावना हुई है, सो सत्य होकर संसार स्थित हुआ है, जब चित्तका त्याग करेगा, तब संसारकी सत्यता जाती रहैगी ।। राम उवाच ॥ हे भगवन् ! तुमने कहा जो यह विश्व कल्पनामात्र है, सो मैंने जाना कि, इसप्रकार है, कछु सत्य नहीं, जैसे लवण राजा अरु इंद्र ब्राह्मणके पुत्र, अरु शुक्र इनकी कलना फुरणेविषे दृढ भई तब फुरणरूप विश्व सत्य होकार स्थित भये अरु भासने लगे । हे भगवन् ! यह मैं जानता हौं; कि विश्व फुणेमात्र है, जब ऊरणा मिटि जाता है, तिसके पाछे जो शांतिरूप शेष रहता है, सो कहौ । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी अब तू सम्यक् बोधवान् हुआ है, जो जानने योग्य है, सो तैने जाना है। हे रामजी ! यह अध्यात्मशास्त्रका सिद्धांत है जो अपर सब दृश्यका असंभव है, एक चिद्धन ब्रह्म अपने आपविषे स्थित है । हे रामजी ! आत्मा शुद्ध है; अरु निर्मल है, विद्या अविद्यातेरहित है, संसारका तिस