पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(१२३६ ) योगवासिष्ठ । कर्म कर्तव्य नहीं सो यह उपदेश किसको है? वसिष्ठ उवाच॥हे रामजी । आत्माते इतर कछु नहीं, विश्व भी तिसका चमत्कार है, जैसे समुद्रविषे पवनकारिकै नानाप्रकारके तरंग फुरते हैं, अरु जलते इतर कछु नहीं, तैसे आत्माचेतनमात्र है, तिसते चैत्योन्मुखत्व अहंभावको लेकर फुरा है, तिसकरि देशकाल वस्तु बन गए हैं, अरु शास्त्र फुरे हैं, बहुरि ऊरणेते दो रूपधारे हैं, एक विद्या एक अविद्या, तिसविषे जो विद्यारूपजीव हुए हैं सो ईश्वर कहते हैं, अरु अविद्यारूप हुए हैं सो इतर जीव हैं, जिनको अपने स्वरूपविषे अहंप्रत्यय वास्तवकी रही है, सो ईश्वर हैं, अरु जिनको स्वरूपका प्रसाद हुआ, अरु संकल्पविकल्पविषे बहते हैं, सो जीव दुःखी हैं, हे रामजी ! एती संज्ञा फुरणेविषे हुई हैं, तौभी आत्माते इतर कछु नहीं, जैसे एकही रस फूल फल वृक्ष हुआ है, रसते इतर कछुनहीं, अरु आत्मा रमकी नाईं भी प्रमाणको नहीं प्राप्त भया, फुरणेकरि ईश्वर जीव विद्या अविद्या हुई है, आत्माविषे कछु नहीं ॥ हे रामजी। जिसका संकल्प - अधिभूतकविषे दृष्ट नहीं हुआ, सो जीव शीत्रही आत्मपदको प्राप्त होता हैं, तिसको आत्माका साक्षात्कार शीग्रही होता हैं। अरु जिनका संस्कार अधिभूतकविषे दृढ हुआ है, सो चिरकालकार प्राप्त होते हैं, आत्मपदकी प्राप्तिविना दुःख पाते हैं, अरु जिसको आत्मपदकी प्राप्ति होती है, सो सुखी होते हैं। हे रामजी! ज्ञानी अरु अज्ञानीके स्वरूपविषे भेद कछु नहीं, सम्यक अरु असम्यक् दर्शनका भेद है ॥ हे रामजी ! विद्या भी दो प्रकारकी है, एक ईश्वरवाद, एक अनीश्वखाद है, जो ईश्वरवादी हैं, सो तुरत पदको प्राप्त होते हैं, जो अनीश्वरवादी हैं तिनको जब ईश्वरकी भावना होती है, तब शास्त्र गुरु कारकै ईश्वरकी प्राप्ति होती है, अरु ईश्वरवादी भी दो प्रकार के हैं, एक यह हैं, जो अपर वासना त्यागिकार ईश्वरपरायण होते हैं, तो शीघ्रही ईश्वरको प्राप्त होते हैं, सो आत्माही ईश्वर है, जो सर्वका अपना आप है, अरु एक ईश्वरको मानते हैं वासना संसारकी ओर होती है, तो चिरकालकर प्राप्त होते हैं, अरु अनीश्वरवादी भी दो प्रकार के हैं, एक कहते हैं जो कछु होवैगा; तिनको होते होतेकी भावनाते शास्त्र गुरुकार आत्मपदकी प्राप्ति