पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३६२

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भूमिकालक्षणविचारवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१२४३ ) इसप्रकार दान करता है । हे रामजी ! इसप्रकार कुलके उपदेशकारि अरु शास्त्रके भयकार धर्मविषे विचरताहै, अरु पापका त्याग करताहै, ऐसाजो शास्त्र अनुसार विचरणेवाला पुरुष सो धर्मात्मा कहाता है सो धर्मात्मा पुरुष भी दो प्रकारके हैं, एक प्रवृत्तिकी ओर हैं, एक निवृत्तिकी ओर हैं, जो प्रवृत्तिकी ओर हैं, सो पुण्यकर्मोंकार स्वर्गफल भोगते हैं, वह मोक्षको उत्तम नहीं जानते, इसते संसारविषे भ्रमते हैं, जलके तृणवत् कभी चिरकालते इस क्रमविषे आयकार मुक्त होते हैं, अरु जो निवृत्तिकी ओर होता है, तिसको विषयभोगते वैराग्य उपजता है, अरु कहता हैं। कि, यह संसार मिथ्या है, मैं इसको तरौं, अरु तिस पदको प्राप्त होऊ, जहाँ क्षय अरु अतिशय न होवे, यह संसार सर्वदा चलरूप है, अरु दुःखदाई है । हे रामजी । तिस पुरुषको इस क्रम कारकै ज्ञानविज्ञान उत्पन्न होते हैं, अरु जो पशुधर्मी मनुष्य हैं, तिनको ज्ञान प्राप्त होना कठिन है, पशुधर्मा कहिये जो शास्त्रके अर्थको नहीं जानते कि, शुभ क्या हैं, अरु अशुभ क्या है, अपनी इच्छाविषे वर्तना, अनुभवका ग्रहण करना, विचारते रहित होना, अरु मनुष्य भी दो प्रकारके हैं, एक प्रवृत्तिका लक्षण, एक निवृत्तिका लक्षण है, प्रवृत्ति कहिये जिसको शास्त्र शुभ कहे, तिसको ग्रहण करना, अशुभका त्याग करना, कामना धारिकै यज्ञादिक शुभ कर्म करणे, फलके निमित्त, जो स्वर्गधनपुत्रादिक मेरे ताई प्राप्त होगे, तिनकी प्रार्थना धारिकार शुभ कर्म करणे, इसप्रकार संसारसमुद्रविषे बहते हैं, अरु चिरकालकार निवृत्तिकी ओर भी आते हैं, तब स्वरूपको पाते हैं, सो निवृत्ति क्या है, जो निःकाम होकर शुभ करणे, तिनकार अंतःकरण शुद्ध होता है, तब तिसको वैराग्य उपजता हैं, अरु कहता हैं, मेरे ताई कर्मीसाथ क्या है, अरु फलोंकार क्या है, मैं किसीप्रकार आत्मपदको प्राप्त होऊ अरु संसारते कब मुक्त होऊंगा, यह संसार मिथ्या है, अरु भोगकर मेरे तांई क्या है, यह भोग सर्प है ॥ हे रामजी। इसप्रकार भोगकी निंदा करता है, अरु उपरत होता हैं, अरु शम दम आदिक जो ज्ञानके साधन हैं तिनविषे विचरता है, अरु देश काल पदार्थको शुभ अशुभ विचारता है अरु