पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( १२५० ) योगवासिष्ठ । संस्कार बढ़ता जाताहै, अरु ज्ञान प्राप्त होता है, जैसे पहलवान खेलताहै, अरु रात्रिको सोय जाता हैं, बद्धार दिन हुए उठता है, तब पहलवानहीका अभ्यास आय फुरताहै, जैसे कोऊ मार्ग चलता २ सोय जावै, अरु जागिकार चलने लगे, तैसे वह फेरि पूर्वके अभ्यासको लगता है। ॥ हे रामजी 1 जिसको भावना होती है जो मेरे ताई विशेषता प्राप्त होवै, तिसकरि जन्मको पाता है, ब्रह्मा आदि चींटीपर्यंत जिसकोविशेष होनेकी कामना हैं, सो जन्म पाता है, अरु ज्ञानीको भोगकी इच्छा अरु विशेष प्राप्ति होने की इच्छा नहीं होती, जिनको भोगकी इच्छा होती है, सो भोगकर आपको विशेष जानते हैं, अरु अनिष्टके निवृत्तिकी इच्छा करते हैं, अरु ज्ञानीको वासना कोऊ नहीं होती कि, यह विशेषता मेरे ताई प्राप्त होवै, इसीते बहुरि जन्म नहीं पाता, जैसे भूना बीज नहीं उगता, तैसे वासनाते रहित ज्ञानी जन्म नहीं पाता ॥हे रामजी! जन्मका कारण वासना है, जैसी जैसी वासना होती है, तैसी अवस्थाको प्राप्त होता है; सो नानाप्रकारकी वासना हैं, जब शरीर छूटनेका समय आता है। तब जो वासना दृढ होती है, जिसका सर्वदा अभ्यास होता है, अंतकालविपे वह सर्व वासना दिखाई देती हैं, पाठकी अरु तुपकी कर्मकी देवताकी इत्यादि वासना आगे आनि स्थित होती हैं, तिस समय सबको मर्दन कारकै वही भासती है । हे रामजी ! तिस समय अग्रगत पदार्थ होते हैं, सो भी नहीं भासते, पांचों इंद्रियोंके विषय विद्यमान होवें तौ भी नहीं भासते, वही पदार्थ भासता है, जिसका दृढ अभ्यास किया होता है, वासना तो अनेक होती हैं, परंतु जैसी वासना दृढ़ होती है, तिसीके अनुसार शरीर धारता है, जब देह छूटता है, तब मुहूर्तपर्यंत जड़ता रहती है, सुषुप्तिकी नाई तिसके उपरांत चेतनता होती है, तब वासनाके अनुसार शरीरको देखता है,अरु जानता है कि, यह मेरा शरीर है, मैं उत्पन्न हुआहौं, एक इसी प्रकार होतेहैं, अरु एक ऐसे होते हैं, कि तहां तिसी क्षणविषे युगका अनुभव करते हैं, बहुरै एक ऐसे होते हैं, जो चिरकालपर्यंत जड़ रहते हैं चिर: कालते उनको चेतनता फुरती है, तिसके अनुसार संसारभ्रमको देखते हैं, अरु एक संस्कारवान होते हैं, तिनको शीघ्रही एक क्षणते चेत