पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३७०

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। विश्ववासनारूपवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१२५१ )। नता होती है, अरु जानता है, कि मैं उस ठोरते मुआ हौं अरु इस ठौर आय जन्मा हौं, यह मेरी माता है, यह मेरा पिता हैं, यह मेरा कुल हैं, इसप्रकार एक मुहूर्तविषे जागिकार देखता है, अरु बड़े कुलको देखता है, इसीप्रकार परलोकको देखता है, अरु यमराजाके दूतको देखता है, अरु जानता है, यह मेरे तांई लिये जाते हैं, अरु देखता है कि, मेरे पुत्रोंने मेरे पिंड किये हैं, तिसकार मेरा शरीर हुआ है, अरु मेरे ताई दूत ले चले हैं, तब आगे धर्मराजको देखता है, तिसके निकट जाय खड़ा होता हैं, अरु पुण्य पाप दोनों मूर्ति धारिकार इसके आगे आनि स्थित होते हैं, तब धर्मराज अंतर्यामीसों पूछता है, कि इसने क्या कर्म किये हैं, जो पुण्यवान होता है, तौ स्वर्गभोग भोगायकारे बारे योनिविषे डारि देते हैं, जो पापी होता है तौ नरकविषे डार देते हैं, इसप्रकार जन्मको धारता है, सर्पकी योनिमें कहता है, मैं सर्प हौं, बलद, वानर, तीतर, मच्छ, बगला, गर्दभ, वल्ली, वृक्ष इत्यादिक योनिको पाताहै, अरु जानता है, मैं यही हौं, अकस्मात काकतालीय योगकी नाईं कदाचित् मनुष्यशरीर पाता है, अरु माताके गर्भविषे जानता है, कि यहां मैं जन्म लिया है, यह मेरी माता है, मैं पिताके उत्पन्न भया हौं, यह मेरा कुल है, बहुरि बाहिर निकसता है, बालक होता है, अरु जानता है, कि मैं बालक हौं, बहुरि यौवन अवस्था होती है, तब जानता है, मैं ज्वान हौं, बहुरि वृद्ध होता है, तब जानता है मैं वृद्ध हौं, इसप्रकार कालको बिताता है, बहुरि मृत्युको पाता हैं, अरु सर्प, तोता, तीतर, वानर, मच्छ, कच्छ, वृक्ष, पशु, पक्षी, देवता इत्यादिकोंके जन्म धारता है ॥ हे रामजी संसारविषे घटीयंत्रकी नई फिरता है, कबहूँ ऊध्र्वको, कबहूँ अधःको जाता है, स्वरूपके प्रमादकारि दुःख पाताहै, हे रामजी ! एता विस्तार जो तुमको कहा है, सो बना कछु नहीं, केवल अद्वैत आत्मा है, चित्तके संयोगकार एते भ्रमको देखता है, वासनाद्वारा विमानों को देखता है, तहाँ आकाशमें जाता है, जैसे पवन गंधको ले जाता है तैसे पुर्यधुकको ले जाता है, अरु शरीरको देखता है । हे रामजी ! आत्माते इतर कछु नहीं, परंतु चित्तके संयोगकार एते भ्रमको देखता है ताते