पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विश्वकाशैकताप्रतिपादनवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. ( १२५५) हुए हैं, जबलग शब्द अर्थकी भावना है, तबलग भासते हैं, जब भावना निवृत्त हुई तब शब्द अर्थ कोऊ नहीं भासैगा, केवल शुद्ध चेतनमात्रही शेष रहेगा, बहुरि संसारका भाव किसी ठोर न होवैगा, जैसे पवन जबलग चलता है, तबलग जानता है, कि पवन है, अरु गंध भी -पवनकरिके जानीजाती है, सुगंध आई अथवा दुर्गंध आई अरु जब पवन चलनेते रहित होता है, तब नहीं भासता, अरु गंध भी नहीं भासता, तैसे जब ऊरणा निवृत्त हुआ, तब संसार अरु संसारका अर्थ दोनों नहीं भासते, अरु फुरणेविषे जीव जीव प्रति ज्यों ज्यों अपनी अपनी सृष्टि है। तिस २ सृष्टिविषे सत्ता समान ब्रह्म स्थित है,अरु सर्वका अपनाआप है, द्वैतभावको कदाचित नहीं प्राप्त भया ॥ हे रामजी 1 ताते ऐसे जान कि, आकाश भी आत्मा है, पृथ्वी भी आत्मा है, जल भी आत्मा है, अग्नि आदिक सर्व पदार्थ आत्माही हैं, अथवा ऐसे जान कि, सर्व मिथ्या हैं, इनका साक्षीभूत सत् ब्रह्मही अपने आपचिपे स्थित है, इतर कछु नहीं, उसी ब्रह्मविषे अंशते अनेक सुमेरु अरु मंदराचलआदिक स्थित हैं, अरु अंशांशीभाव भी आत्माविषे स्थूलताके निमित्त कहे हैं, वास्तव नहीं, जतावनेनिमित्त कहे हैं, आत्मा एकरस है । हे रामजी ! ऐसा पदार्थ कोऊ नहीं, जो आत्मसत्ताविना होवै, जिसको सत्यजानताहै, सो भी आत्मा है, अरु जिसको असत्यजानता हैं, सो भी आत्मा है, आत्माविषे जैसे सत्यका फुरण है, तैसे असत्यका ऊरणा हैं, फुरणा दोनोंका तुल्य है, जैसे स्वप्नविषे एक सत्य जानता है, एक असत्य जानता है, तैसे जो इंद्रियोंके विपय होते हैं, तिनको सत् जानता है, अरु आकाशके फूल, ससेके शृंगको असर कहता हैं, सो सर्व अनुभवकार फुरे हैं, ताते अनुभवरूप है, अरु ऐसा पदार्थ कोऊ नहीं जो आत्माविषे असत नहीं; जो कछु भासते हैं, सो सर्व फुरणेविपे हुए हैं। सत्य क्या अरु असत्य क्या, सब मिथ्या हैं, स्वप्नके सत् अरु असत्की नाई है, जो अनुभवकारकै सिद्ध है, सो सर्व सत्य है, अरु सत्य अनुभवते इतर है सो सब असत्य है ॥ हे रामजी गुणातीत परमात्मस्वरूपविषे स्थित होहु ॥ हे रामजी ! भूत भविष्य वर्तमान तीनों काल I