पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३८२

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जाग्रतअभावप्रतिपादनवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१२६३ ) -तीन भूमिका जाग्रत अवस्था हैं, चतुर्थ स्वप्न अरु पंचम सुषुप्ति है, षष्ठ तुरीया, सप्तम तुरीयातीत है । हे रामजी ! प्रथम तीन भूमिकाविषे संसारकी सत्यता भासती है, ताते जाग्रत् कही हैं, अरु अपर चारोविर्षे संसारका अभाव हैं, ताते जाग्रतते विलक्षण है, जाग्रविषे घट पट आदिक सव भासते हैं, घट घटही है, पट पटही है, अन्यथा नहीं, अपना अपना कार्य सिद्ध करते हैं, ताते अपने कालविषे ज्योंके त्यों हैं, इसीप्रकार सर्व पदार्थ हैं, स्थावर जंगमको जानता है, नामरूपकार ग्रहण करता हैं, अरु हृदयविषे राग द्वेष नहीं धरता, जो विचारकारकै तुच्छ जाने है, सो संसारका अत्यंत अभाव नहीं जाना, अरु ब्रह्मस्वरूप भी नहीं जानता काहेते कि, तिसको स्वरूपका साक्षात्कार नहीं भया, जब स्वरूपको जानै तब संसारका अत्यंत अभाव हो जावे, इन तीनों भूमिकाकार संसारकी तुच्छता होती है, नष्टता नहीं होती, इनको पायकरि जब शरीर छूटता है, तब अपर जन्मविषे उसको ज्ञान प्राप्त होता है, अरु दिन दिनविषे ज्ञानपरायण होता है, जब दृढबुद्धि हुई, तब ज्ञान उपजा है, जैसे बीजके प्रथम अंकुर होता है, बहुरि टास फूल फल निकसते हैं, तैसे प्रथम भूमिका ज्ञानका बीज है, दूसरी अंकुर है, तीसरी टास है, चतुर्थ ज्ञानकी प्राप्ति होती है, सो फल है, प्रथम -तीन भूमिकावाला धर्मात्मा होताहै, पुरुषोंविषे श्रेष्ठ , तिसका लक्षण यह जो निरहंकार अरु असंगी धीर होता है, जिसकी बुद्धिते विषयकी तृष्णा निवृत्त भई है, अरु आत्मपदकी इच्छा है, सो पुरुष श्रेष्ठ कहता है, अरु प्रकृत आचारविषे यथाशास्त्र विचरता है, शास्त्रमार्गते उलंधित कदाचित नहीं वर्तता, शास्त्र मार्गकी मर्यादासाथ अपने प्रकृत आचारविषे विचरता सो पुरुष श्रेष्ठ है।राम उवाच॥हे भगवन् । पाछे तुमने कहा कि, जब वह पुरुष शरीर छोड़ता है, तब एकमुहूर्तविषे उसको युगव्यतीत होता है,जन्मते आदि मृत्युपर्यंत जैसी किसीको भावना होतीहै तैसा आगे भासताहै सो एक मुहूर्तविषेयुग कैसे भासताहै, यह कहौ।वसिष्ठ उवाच ।।हे रामजी ! यह जगत् जो तीनोंकाले भासता है, सो ब्रह्मस्वरूप है, इतर कछु नहीं भासता, समानही है; जैसे इक्षुविषे मधुरता है, तैसे ब्रह्मविषे जगत् है,