पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३९०

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बृहस्पतिबलिसंवादवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६! (१२७१) शताधिकष्टाविंशतितमः सर्गः १२२. बृहस्पतिबलिसंवादवर्णनम् । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! इसप्रकार बृहस्पतिने बलि राजाको कहा, सो तेरे प्रश्न उत्तरनिमित्त मैं कहा है । हे रामजी 1 जबलग इसके हृदयविषे संसारकी सत्यता है, तबलग जैसे कर्म करेगा, तैसा शरीर धारैगा । हे रामजी ! जिसवस्तुको चित्त देखताहै, तिसकी ओर अवश्य जाता है, तिसके देखनेका संस्कार इसके अंतर होताहै, जिसे पदार्थको इसने सत् जाना है, तिस पदार्थ का संस्कार स्थित हो जाता है, अरु समयकरि वह संस्कार प्रगट होता है, जैसे मोरके अंडेविषे शक्ति होती है, जब समय आया, तब नानाप्रकारके रंग तिसविषे प्रगट भासते हैं, तैसे चित्तका संस्कारभी समय पायकार जागताहै । हे रामजी सिो चित्त अज्ञानते उपजाहैं, बहुरि बृहस्पतिने कहा॥ हे राजनाबीज पृथ्वीपर उगता हैं, आकाशविषे नहीं उगता, जैसा बीजपृथ्वीविषे बोता है, तैसाहीफल होता है, सो यहाँ अहंरूप जो है, अपना होना सोपृथ्वी है, जैसी जैसी भावनाकरि कर्म करता है, तैसा तैसा चित्तरूपी पृथ्वीपर उत्पन्नहोताहै, बहुरि फल होता है, जो उन कमौके अनुसार धारताहै, अरुसुखदुःखको भोगता है, अरु ज्ञानवान् जो है सो आकाशरूप है, सो आकाशविषेबीज कैसे उपजै, बीज भावनाकार अज्ञानरूपी पृथ्वीविषे उगता है-॥ बलिरुवाच ॥ हे देवगुरु जीव जीवता हो, अथवा मृतक होवे, इसको जो अनुभव होता है, सो अपनी भावना जनहीते होता है, ताते यह मृतक हुआ, अरु इसकी पिंडादिकविषे भावना न हुई, तो फिर इसका शरीर कैसे होता है, सुखदुःख भोगनेवाला जो हुआ तौ अकृत्रिम देह हुआ। बृहस्पतिरुवाच ॥ हे राजन् !पिंडदान आदिकक्रिया न होवै, अरु इसके अंतर भावनाहै, अरु तिस समय किसीने न किया तो भी वह जो अंतर भावना है, सोई कर्मरूप है, उसकार भासि आता है, अरु जो उसके अंतर भावना नहीं, अरु किसी बांधवने इसके निमित्त पिंडदान