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जीवन्मुक्तिनिश्चयोपदेशवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

रहित अक्षोभरूप अनुभव मैंही हौं, सब स्वादका जिसकरि अनुभव होता है, सो चेतन ब्रह्म आत्मा मैंही हौं,स्त्रीविषे आसक्त है चित्त जिसका, अरु चंद्रमाकी कांतिकरि मुदिता अधिक है जिसको, स्त्रीका स्पर्श अरु मुदिताका जिसकरि अनुभव होता है, एसा चेतन ब्रह्म मैंही हौं, पृथ्वीविषे स्थित जो पुरुषहै, तिसकी दृष्टि चंद्रमाके मंडल में जाय लगती है तिसका अनुभव जिसविषे होता है सो मैंही हौं, सुख दुःखकी कलनाते रहित अमनसत्ता अनुभवरूप जो आत्मा है, सो चेतनरूप आत्मा ब्रह्म मैंही हौं. खजूर अरु निंब आदिकविषे स्वादरूप मैंही हौं, खेद अरु आनंद लाभ अलाभ मुझको तुल्य है, जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति साक्षी तुरीयारूप आदि अंतते रहित चेतन ब्रह्म निरामय मैंही हौं, जैसे क्षेत्रके गन्नेविषे एकही रस होताहै, तैसे अनेक मूर्तिविषे एक ब्रह्मसत्ता स्थित हैं, सोसत्य शुद्ध सम शांतरूप सर्वज्ञ है, प्रकृत जो सुक्ष्म तिमका प्रकाशक है, सूर्यकी नाई सो प्रकाशरूप ब्रह्म मैंही हौं, सब शरीरविषे व्यापि रहा हौं, जैसे मोतीविषे तंतु गुप्त होता है, तिसविषे मोती परोये हैं, तैसे मोतीरूप शरीरविषे तंतुरूप गुप्त मैंही हौं, अरु जगतरूपी दूधविषे ब्रह्मरूपी घृत मैंही व्यापि रहा हौं॥ हे रामजी! जैसे स्वर्णविषे नानाप्रकारके भूषण बनते हैं, सो स्वर्णते इतर कछु नहीं, तैसे सब पदार्थ आत्माविषे स्थित हैं आत्माते इतर कछु नहीं पर्वत समुद्र नदीविषे सत्तारूप आत्माही है, सर्व संकल्पका फलदाता, अरु सर्वपदार्थका प्रकाशक आत्माही है, अरु सर्व पाने योग्य पदार्थका अंत है, तिस आत्माकी उपासना हम करते हैं, घट पट तट कंधविषे स्थित हैं, अरु जाग्रत‍्विषे सुषुप्तरूप स्थित है, जिसविषे फुरणा कोई नहीं ऐसे चेतनरूप आत्माकी उपासना हम करतेहैं मधुरविषे जो मधुरता है, अरु तीक्ष्णविषे तीक्ष्णता है, अरु जगत‍्विषे चलना शक्ति है, तिस चेतन आत्माकी हम उपासना करतेहैं. जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीया, तुरीयातीतविषे जो समतत्व है, तिसकी हम उपासना करते हैं, त्रिलोकीके देहरूपी जो मोती हैं, तिनविषेजो तंतुकी नाईं अनुस्यूत है, अरु पसारणे संकोचनेका कारण है, तिस चेतनरूप आत्माकी हम उपासना करते हैं जो षोडश कलासंयुक्त अरु षोडश कलाते रहित है, अरु