पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/४३८

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विराटात्मवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६.


अरु चींटीके निकट अपर बड़े भासते हैं, तैसे जो ज्ञानवान पुरुष हैं, तिनको बडे पदार्थ देशकालसंयुक्त विश्व तुच्छ भासता है, असव जानता है, अरु जो अज्ञानी है, तिसको संकल्पसृष्टि बड़ी होकार भासती है, जैसे पहाड़ बडा भी होता है, परंतु जिसकी दृष्टिते दूर है, तिसको महालघु तुच्छ जैसा भासता है, अरु चींटीके निकट तुच्छ मृत्तिकाकी टेल राखी पहाडके समान है, तैसे ज्ञानीकी दृष्टिते यह जगत् रहित है, इसकार बड़ा जगत् भी उसको तुच्छरूप भासता है, अरु अज्ञानीको तुच्छरूप भी बड़ा भासता है । हे रामजी ! यह विश्व भ्रमकारकै सिद्ध हुआ है, जैसे भ्रमकारकै सीपीविषे रूपा भासता है, अरु जेवरीविषे सर्प भासता है, तैसे आत्माके प्रमादकार विश्व भासता है, अरु आत्माते भिन्न कछु नहीं, जैसे निद्रादोषकारकै पुरुष अपने अंग भूलि जाते हैं, अरु जागे हुए सब अंग अपने भासते हैं, तैसे अविद्यारूपी निद्राकरिक पुरुष सोया हुआ जब जागता है, तब सब विश्व अपना आपदिखाई - देता है, जैसे स्वमते जागा हुआ स्वप्नकी विश्वको आपना आपही देखता है, तैसे यह विश्व अपना आपही भागा॥ हे रामजी! जब यह पुरुष निद्रामें सोया होता है, तब शुभ अशुभ विश्वविषे राग द्वेष कछु नहीं होता, अरु जागता है, तब इष्टविषे राग होता है, अनिष्टविष द्वेष होता है, सोजबलग इसको विश्वविष हेयोपादेय बुद्धि है, जो सर्वज्ञ हैं तो भी मूर्ख है । हे रामजी। जब यह पुरुष जड़ हो जावै, तब कल्याण होवै, सो जड़ होना यही है, कि दृश्यते रहित आत्माविपे स्थित होवै, सो आत्मा चिन्मात्र है, आत्माते इतर जो कछु करता है, सत् अथवा असत् जानता है, तबलग स्वरूपकी प्राप्ति नहीं होती, जब संवित् फुरणेते रहित होवै, तब स्वरूपका साक्षात्कार होवै, ताते फुरणेकात्याग करु, अरु यह स्थावर जंगम जगत् जो तुझको भासता है, सो सर्व ब्रह्मस्वरूप है, जब तू ऐसे निश्चय करैगा, तब सब विवर्त्तका अभाव हो जावैगा, आत्मपदही शेष रहैगा ॥ राम उवाच ।। हे भगवन् । यह जीव जो तुम कहा सो जीवका स्वरूप क्या है, अरु जीव आकारको ग्रहण कैसे करता है, अरु इसकाअधिष्ठान परमात्मा कैसे हैं, अरु इसके
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