पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/४६९

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| ( १३५०). योगवासिष्ठ । कहता हौं, अनुभवरूप आत्माको आश्रयकृरि संसारसमुद्रके पारको प्राप्त होह, ताते विलंब न कर, अपने आपविषे स्थित होहु । हे रामजी संसाररूपी वृक्षका अंत लिया चाहे तो नहीं पाता, अरु मैं तुझको ऐसा उपाय कहता हौं, जो सर्वका अंत कहिये सुगंधिको ग्रहण किये संसाररूपी एक वृक्ष हैं, तिसविषे चेतनमात्र सुगंधिता है, सो तेरा अपना आप है, तिसको ग्रहण करु, जो सर्वका अधिष्ठान है, जब तिसको ग्रहण किया तब सर्वको ग्रहण किया हैं ॥ हे रामजी ! जेता कछु प्रपंच तुमको भासता हैं, सो सब आत्मरूप हैं; तिसकी भावना करु, अरु जाग्रतविषे सुषुप्त होहु सुषुप्तिविषे जाग्रत हो, संसारकी सत्ता जो जाग्रत है, तिसकी ओरते सुषुप्तहोहु सुषुप्त कहिये फुरणेते रहित होकार तुरीयापदविषे स्थित होहु जहाँ गुणका क्षोभ कोऊ नहीं, अरु निर्मल शांतिरूप,जहाँ एक अरु दोकी कलना कोऊ नहीं, तिसविषे स्थित होहु । रास उवाच ॥ हे भगवन् ! ऐसे जो शतरूप तुरीयापदविषे स्थित होना तुमने कहा, सो तुम्हारेविषे यह नहीं आता कि मैं, वसिष्ठ हौं तिसका रूप क्या है, जो अहं प्रतीति तुमको नहीं होती हैं । वाल्मीकिरुवाच ॥ हे भरद्वाज ! जब इसप्रकार रामजीने प्रश्न किया, तब वसिष्ठजी तूष्णीं हो गये अरु सर्व सभा संशयके समुद्रविधे मग्न भई, तब रामजी बोले॥हे भगवन् ! तूष्णीं होना तुम्हारा अयोग्यहै, तुम साक्षात् विश्वगुरु, हौ, ब्रह्मवेत्ता हौ, ऐसी कौन बात है, जो तुमकोन आवै, अथवा मुझको समर्थ नहीं देखते सो कहौ, जब ऐसे रामजीने कहा, तब वसिष्ठजी एक घड़ी उपरांत बोले॥ वसिष्ठ उवाच॥ हे रामजी ! असमर्थताकारकै मैं तूष्णीं नहीं भया परंतु जैसा तेरे प्रश्नका | उत्तर है, सोई दिखाया कि तेरे प्रश्नका तूष्णीं ही उत्तरहै, जो प्रश्न करनेवाला अज्ञानी होवै तौ उसको अज्ञान लेकर उत्तर कहिये, अरु जो तज्ज्ञ होवे, तिसको ज्ञानकार उत्तर दीजिये, आगे तू अज्ञानी था, सविकल्प उत्तर मैं देताथा, अब तू ज्ञानवान हैं, तेरे प्रश्नका उत्तर तूष्णींही हैं ॥ हे रामजी । जो कछु कहना है, सो प्रतियोगीसाथ मिला हुआ है। प्रतियोगी विनाशब्द मैं कैसे कहौं, आगे तू सविकल्प शब्दका अधिकारी था, अरु अब तुझको निर्विकल्पका उपदेश किया है ॥ हे रामजी । शब्द