पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(९२९)
भुशुण्डदर्शनवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

मोर शिखावाले हैं, कहूं बगले, कहूं कबूतर, कहूँ गरुड बैठे हैं, अरु ऐसे शब्द करतेहैं, मानो ब्रह्मकमलते उपजा हुआ ओंकारका उच्चार करता है, कई ऐसे पक्षी हैं, कि तिनकी दो दो चोंच हैं, तहाँ मैं देखिकरि आगे दक्षिणकी कोणको गया, जहां उस वृक्षका टास था, तहां कौए अनेक बैठे हैं, जैसे महाप्रलयविषे मेघ लोकालोक पर्वतपर आय बैठते हैं, तैसे वहां कौए अचल आकार बैठे हैं. सोम, सूर्य, इंद्र, वरुण, कुबेर, इनकी यज्ञकी रक्षा वहांते लेनेहारे हैं, अरु पुण्यवान स्त्रियोंको प्रसन्नता देनेहारे भर्ताके संदेश पहुँचानेवाले हैं, सो वहां बैठे हैं, तिनको मैं देखत भया तिनके मध्य महाश्रीमान भुशुण्ड बैठा है, ऊंची ग्रीवा किये हुए अरु बड़ी कांति है, जैसे नील मणि चमकती है, तैसे उसकी ग्रीवा चमकती है, अरु पूर्ण मन अरु मानी. अर्थ यह कि, मान करने योग्य है, अरु श्याम सब अंग सुंदरअरु प्राणस्पंदको जीतनेहारा नित्य अंतर्मुख अरु नितही सुखी चिरंजीवी पुरुष तहां बैठा है, जगत‍्विषे दीर्घ आयु, जगत‍्की आगमापायी, जिसने देखते देखते बहुत कल्पका स्मरण कियाहै अरु इंद्रकी कई परंपरा देखी हैं, लोकपाल वरुण कुबेर यमादिकके कई जन्म देखेहैं, देवता सिद्धके अनेक जन्म इस पुरुषने देखे , प्रसन्न अरु गंभीर अंतःकरण जिसका, अरु सुंदर है वाणी जिसकी, अरु वक्रताते रहित निर्मम अरु निरहंकार सबको सुहृद् मित्र है, बडी कोटर हलवेकी नाई हैं, जो पिता समान है, तिनको पुत्रकी नाई है, अरु जो पुत्रके समान है, तिनको उपदेश करनेनिमित्त पिता अरु गुरुकी नाई समर्थ होता है, अरु सर्वथा सर्व प्रकार सर्वकाल सबविषे समर्थ है, अरु प्रसन्न महामति हृदय पुंडरीक व्यवहारका वेत्ता है, गंभीर अरु शांतरूप महाज्ञातज्ञेय है, ऐसे पुरुषको मैं देखत भया॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे भुशुंडदर्शनवर्णनं नाम चतुर्दशः सर्गः ॥१४॥



५९