पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/४८०

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शांतिस्थितियौगौपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण.६. १ १३६१) जिनने आत्मपद-पाया है, सो कल्याणमूर्ति हैं ॥ हे रामजी । चिकि त्साका औषध भी यही है, जिनने किया, तिनने किया, अरु जिनने न किया, भोगविषे लंपट रहे, वह मूर्ख तहाँ पडेंगे, जहाँ फेर किसी औषधको न पावेंगे, ताते ।। हे रामजी ! इन भोगोंका त्याग करहु, अरु आत्मविचारविषे सावधान हो, यही औषध है। हे रामजी ! जिस पुरुष मन नहीं जीता, सो मूढ है, भोगरूपी चीकडविषे मग्न है, वह आपदाका पात्र है, जैसे समुद्रविषे नदियां प्रवेश करती हैं, तैसे आपदा तिसको प्राप्त होती हैं, अरु जिसकी तृष्णा भोगते निवृत्त भई हैं, अरु वैराग्य उपजा है; सो मुक्ति योगको प्राप्त होता है, जैसे जीनेकी आदि बालक अवस्था है, तैसे निर्वाण पदकी आदि वैराग्य है ॥ हे रामजी ! यह संसार मिथ्या है, भ्रमकार भासता है, जैसे दूसरा चंद्रमा भ्रमकार भासता है अरु संकल्प नगर भ्रममात्र होता है, अरु मृगतृष्णाका जल भ्रमकार भासता है, वैसे यह जगत् भ्रमकारे भासता है, संसारका बीज अहंता है, जब अहंता उदय हुई तब रूप अवलोक भासते हैं, ताते यही चितवना कर कि मैं नहीं, जब यही भावना करेगा तब शेष जो रहेगा, सो तेरा शतरूप है, जिसविषे आकाश भी शुन्य है। केवल आत्मत्वमात्र है, अहंके उत्थानते रहित है, अरु जड अजड़ है, अरु जड़ताका अभाव है, ताते अजड है, केवल ज्ञानमात्र हैं, अरु विश्व तिसविषे ऐसे है, जैसे जलविषे तरंग होते हैं, अरु जैसे पवनविषे स्पंद होता है, अरु आकाशविषे जैसे शून्यता है, तैसे आत्माविषे जगत् है, सो आत्माते इतर कछु नहीं, जो कछु आत्माते इतर होता, तौ प्रलयविषे नाश हो जाता, सो प्रसयकालविष भी रहता है, जैसे सुर्यकी किरणोंविषे जलाभास सदा रहता हैं, तैसे आत्माविषे विश्वका चमत्कार रहता है, जैसे स्वप्नसृष्टि अनुभव होती है, तैसे यह जाय सृष्टि भी अनुभवरूप है, सो आत्मा अंतर बाहरते रहित, अरु शुद्ध हैं, अद्वैत है, अजर है, अमर हैं, चैत्यते रहित चेतन है, अरु सर्व शब्द अर्थका अधिष्ठान वही हैं, फुरणेकारकै दूसरा भासता है, अरु फुरणा अफ़रणा वही है, जैसे चलना ठहरना दोनों पवनके रूप हैं, जब चलता